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» » तुफ़ैल चतुर्वेदी (दिल कर पन्ने ) Tufail Chaturvedi (Dil ke Panne )



जिस जगह पत्थर लगे थे रंग नीला कर दिया
अबकी रुत ने मेरा बासी जिस्म ताज़ा कर दिया

आइने में अपनी सूरत भी न पहचानी गयी
आँसुओं ने आँख का हर अक्स धुँधला कर दिया

उसकी ख़्वाहिश में तुम्हारा सर है, तुमको इल्म था
अपनी मंज़ूरी भी दे दी, तुमने ये क्या कर दिया

उसके वादे के इवज़ दे डाली अपनी जिन्दगी
एक सस्ती शय का ऊँचे भाव सौदा कर दिया

कल वो हँसता था मेरी हालत पे अब हँसता हूँ मैं
वक्त ने उस शख़्स का चेहरा भी सहरा कर दिया

था तो नामुमकिन तेरे बिन मेरी साँसों का सफर
फिर भी मैं ज़िन्दा हूँ मैंने तेरा कहना कह दिया

हम तो समझे थे कि अब अश्कों की किश्तें चुक गईं
रात इक तस्वीर ने फिर से तकाज़ा कर दिया

किसी को अपना करीबी शुमार क्या करते
वो झूठ बोलते थे, एतबार क्या करते

पलट के लौटने में पीठ पर लगा चाकू
वो गिर गया था तो फिर उस पे वार क्या करते

गुज़ारनी ही पड़ी साँसें पतझड़ों के बीच
जो तू नहीं था तो जाने-बहार क्या करते

दीये जलाना मुहब्बत के अपना मज़हब है
हम ऐसे लोग अँधेरे शुमार क्या करते

खयाल ही नहीं आया, है जख़्म-जख़्म बदन
जो चाहते थे तुझे खुद से प्यार क्या करते

मिज़ाज अपना है तूफ़ाँ को जीतना लड़कर
उतर गया था वो दरिया तो पार क्या करते

कुछ एक दिन में ग़ज़ल से लड़ा ही लीं आँखें
तमाम उम्र तेरा इंतजार क्या करते

रात जागी न कोई चाँद न तारा जागा
उम्र भर साथ मैं अपने ही अकेला जागा

क़त्ल से पहले ज़बाँ काट दी उसने मेरी
मैं जो तड़पा तो न अपना न पराया जागा

भर गई सात चटक रंगों की लय कमरे में
गुदगुदाया उसे मैंने तो वो हँसता जागा

मैं ख़यालों से तेरे कब रहा ग़ाफ़िल जानाँ
शब में नींद आ भी गई तो तेरा सपना जागा

उसकी भी नींद उड़ी सो नहीं पाया वो भी
मैं वो सहरा हूँ कि जिसके लिये दरिया जागा

दिन को तो तय था मगर ख़्वाब में जागा शब को
यानी मैं जाग के हिस्से के अलावा जागा

फिर वो लौ देने लगे पाँव के छाले मेरे
फिर मेरे सर में तेरी खोज का फ़ित्ना जागा


बचे-बचे हुये फिरते हो क्यों उदासी से
मिला-जुला भी करो उम्र-भर के साथी से

ग़ज़ल की धूप कहाँ है, पनाह दे मुझको
गुजर रहा हूँ ख़यालों की सर्द घाटी से

पकड़ सका न मैं दामन, न राह रोक सका
गुज़र गया है तेरा ख़्वाब कितनी तेज़ी से

हवेलियों की निगाहों में आग तैरती है
सवाल पूछ रहा हूँ मैं एक खिड़की से

फ़ना के बाम पे जाकर तलाशे-हक़ होगी
दिखाई कुछ न दिया ज़िन्दगी की सीढ़ी से

हवा के रुख़ से अलग अपनी मंज़िलें मत ढ़ूँढ़
ये रंज़िशें तो मुनासिब नहीं हैं किश्ती से

चमक पे आँखों की तुमको "तुफ़ैल" हैरत क्यों?
दीये जले हैं ये इक उम्र खारे पानी से

वही रगों का टूटना वही बदन निढ़ाल माँ
वही नज़र धुँआ-धुआँ तू फिर मुझे संभाल माँ

मिलेगी तू जो अबके तो मुझे चहकता पायेगी
मुझे भी आ गया है दुख छुपाने का कमाल माँ

मैं ज़िन्दगी की उलझनों से भाग आया तेरे पास
न कर तलब-जवाब माँ न कर कोई सवाल माँ

हज़ारों ग़म थे प्यासे सबकी प्यास को लहू दिया
तेरी तरह किया है हमने काम बेमिसाल माँ

फिर आज बालपन की कुछ कहानियाँ सुना मुझे
है ज़र्द-ज़र्द ज़िन्दगी छिड़क ज़रा गुलाल माँ

सफ़ेद बाल सर पे, आ गई बदन पे झुर्रियाँ
उढ़ा गई हवायें देख मुझको तेरी शाल माँ

मेरे क़लम के रखरखाव से हरीफ़ जल उठे
मेरे उरूज ने दिया है फिर मुझे ज़वाल माँ


तय तो हुआ था साथ ही चलना, कहाँ चला
कुछ तो बताता जा ये अकेला कहाँ चला

तन्हाइयों के खौफ़ से भागा ख़ला१ की सम्त
दिल ने कभी ठहर के न सोचा कहाँ चला

तीरानसीब२ मुझसे ज़ियादा यहाँ है कौन
मुझसे छुड़ा के हाथ उजाला कहाँ चला

शब भीगती हुई है बिछुड़ता हुआ है चाँद
ऐसे में साथ छोड़ के साया कहाँ चला

वो इक नजर में भाँप गया मेरे दिल का हाल
उसके हुज़ूर कोई बहाना कहाँ चला

मैं हूँ फ़क़ीर, काट ही लेता कहीं पे रात
क्यों रौशनी ने मुझको पुकारा कहाँ चला

बारिश की ख़ुश्क आँख टपकने लगी ’तुफ़ैल’
भीगे हुये परों से परिन्दा कहाँ चला


१- शून्य २- हतभाग


भला लगा मुझे मैं उससे ख़ुशगुमान जो था
वो बदमिज़ाज था, हर चन्द मेरी जान जो था

तमाम उम्र कड़ी धूप थी, मैं बच ही गया
किसी की याद का हर सम्त सायबान जो था

सहारे लाखों थे लेकिन पुकारता कैसे?
मुझे तो डूब ही जाना था बेज़बान जो था

नफ़स-नफ़स वो चमकता था दिल में शोला-सा
तुम्हारे बख़्शे हुये ज़ख़्म का निशान जो था

मिज़ाज ही नहीं मिल पाता था हवाओं का
हमारी नाव का बोसीदा बादबान जो था

छलक रही थी फ़ज़ायें, महक रहा था सफ़र
तमाम ज़िस्म मुहब्बत में ज़ाफ़रान जो था

बला की भीड़ में भी उसने मुझको देख लिया
चमक रहा था अलग मैं लहूलुहान जो था

कुबूल कम है यहाँ बात, रद ज़ियादा है
तुम्हारे शहर में भाई हसद१ ज़ियादा है

तमाम शहर उलझता है रात-दिन मुझसे
तो क्या ये सच है कि किछ मेरा कद ज़ियादा है

इसीलिये तो हमेशा ही मात खाते हैं
हमारी अगली सफ़ों में ख़िरद२ ज़ियादा है

जरा-सा देख के रुकना न कोई धोका हो
यहाँ पे ज़ख्मी परिन्दो ! मदद ज़ियादा है

वो कर के नेकियाँ अहसां जताता रहता है
भलाई उसमें है लेकिन वो बद ज़ियादा है

वो बादशाह है और आदमी भला है वो
ये बात झूठ सही मुस्तनद३ ज़ियादा है

मैं ठीक हूँ- ये निगाहों के घाव छुपाऊँ कैसे
मेरे खिलाफ़ मेरी ही सनद४ ज़ियादा है

About dil ke panne

Hi there! I am Hung Duy and I am a true enthusiast in the areas of SEO and web design. In my personal life I spend time on photography, mountain climbing, snorkeling and dirt bike riding.
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