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» »Unlabelled » -जौन एलिया ( दिल के पन्ने ) Jaun Eliya. (Dil ke Panne)


तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो
जो मिले ख़्वाब में वो दौलत हो

तुम हो ख़ुशबू के ख़्वाब की ख़ुशबू
और इतने ही बेमुरव्वत हो

तुम हो पहलू में पर क़रार नहीं
यानी ऐसा है जैसे फुरक़त हो 

है मेरी आरज़ू के मेरे सिवा
तुम्हें सब शायरों से वहशत हो

किस तरह छोड़ दूँ तुम्हें जानाँ
तुम मेरी ज़िन्दगी की आदत हो 

किसलिए देखते हो आईना 
तुम तो ख़ुद से भी ख़ूबसूरत हो

दास्ताँ ख़त्म होने वाली है
तुम मेरी आख़िरी मुहब्बत हो

हमारे शौक के आंसू दो, खुशहाल होने तक 
तुम्हारे आरज़ू केसो का सौदा हो चुका होगा 

अब ये शोर-ए-हाव हूँ सुना है सारबानो ने 
वो पागल काफिले की ज़िद में पीछे रह गया होगा 

है निस-ए-शब वो दिवाना अभी तक घर नहीं आया 
किसी से चन्दनी रातों का किस्सा छिड़ गया होगा

महक उठा है आँगन इस ख़बर से
वो ख़ुशबू लौट आई है सफ़र से 

जुदाई ने उसे देखा सर-ए-बाम
दरीचे पर शफ़क़ के रंग बरसे 

मैं इस दीवार पर चढ़ तो गया था 
उतारे कौन अब दीवार पर से 

गिला है एक गली से शहर-ए-दिल की 
मैं लड़ता फिर रहा हूँ शहर भर से 

उसे देखे ज़माने भर का ये चाँद
हमारी चाँदनी छाए तो तरसे 

मेरे मानन गुज़रा कर मेरी जान 
कभी तू खुद भी अपनी रहगुज़र से

ख़ामोशी कह रही है, कान में क्या 
आ रहा है मेरे, गुमान में क्या 

अब मुझे कोई, टोकता भी नहीं 
यही होता है, खानदान में क्या 

बोलते क्यों नहीं, मेरे हक़ में 
आबले[1] पड़ गये, ज़बान में क्या 

मेरी हर बात, बे-असर ही रही 
नुक़्स है कुछ, मेरे बयान में क्या 

वो मिले तो ये, पूछना है मुझे 
अब भी हूँ मैं तेरी, अमान में क्या 

शाम ही से, दुकान-ए-दीद है बंद 
नहीं नुकसान तक, दुकान में क्या 

यूं जो तकता है, आसमान को तू 
कोई रहता है, आसमान में क्या 

ये मुझे चैन, क्यूँ नहीं पड़ता 
इक ही शख़्स था, जहान में क्या

About dil ke panne

Hi there! I am Hung Duy and I am a true enthusiast in the areas of SEO and web design. In my personal life I spend time on photography, mountain climbing, snorkeling and dirt bike riding.
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