आईना सामने रक्खोगे तो याद आऊंगा
अपनी ज़ुल्फ़ों को सँवारोगे तो याद आऊंगा
रंग कैसा हो, ये सोचोगे तो याद आऊंगा
जब नया सूट ख़रीदोगे तो याद आऊंगा
भूल जाना मुझे आसान नहीं है इतना
जब मुझे भूलना चाहोगे तो याद आऊंगा
ध्यान हर हाल में जाये गा मिरी ही जानिब
तुम जो पूजा में भी बैठोगे तो याद आऊंगा
एक दिन भीगे थे बरसात में हम तुम दोनों
अब जो बरसात में भीगोगे तो याद आऊंगा
चांदनी रात में, फूलों की सुहानी रुत में
जब कभी सैर को निकलोगे तो याद आऊंगा
जिन में मिल जाते थे हम तुम कभी आते जाते
जब भी उन गलियों से गुज़रोगे तो याद आऊंगा
याद आऊंगा उदासी की जो रुत आयेगी
जब कोई जश्न मनाओगे तो याद आऊंगा
शैल्फ़ में रक्खी हुई अपनी किताबों में से
कोई दीवान उठाओगे तो याद आऊंगा
शम्अ की लौ पे सरे-शाम सुलगते जलते
किसी परवाने को देखोगे तो याद आऊंगा
जब किसी फूल पे ग़श२ होती हुई बुलबुल को
सह्ने-गुल्ज़ार में देखोगे तो याद आऊंगा
देखें वो कब शाद करे है
ग़म से कब आज़ाद करे है।
मेरे हाल पे रोने वाले
क्यों आंसू बर्बाद करे है।
कितना सच्चा प्यार था अपना
आज भी दुन्या याद करे है।
हर पल आहें भरता गुज़रे
हर लम्हा फ़र्याद करे है।
मिलते थे जिस पेड़ तले हम
तुम को बराबर याद करे है।
किस के हिज्र में आंखें नम हैं
किस को ऐ दिल याद करे है।
मेरे ख़याल सा है, मेरे ख़ाब जैसा है
तुम्हारा हुस्न महकते गुलाब जैसा है।
मैं बंद आंखों से पढ़ता हूं रोज़ वो चिह्न
जो शायरी की सुहानी किताब जैसा है।
नहीं है कोई ख़रीदार अपना दुनिया में
हमारा हाल भी उर्दू किताब जैसा है।
ये जिस्मो-जां के घरौंदे बिगड़ने वाले हैं
वुजूद सब का यहां इक हबाब जैसा है।
वो रोज़ प्यार से कहते हैं हम को दीवाना
ये लफ्ज़ अपने लिए इक ख़िताब जैसा है।
ये पाक साफ़ भी है, और है मुक़द्दस भी
हमारा दिल भी तो गंगा के आब जैसा है।
जो लोग रखते हैं दिल में कदूरतें अपने
उन्हें न मिलना भी कारे-सवाब जैसा है।
तुम्हें जो सोचें तो होता है कैफ़ सा तारी
तुम्हारा ज़िक्र भी जामे-शराब जैसा है।
किये हैं काम बहुत ज़िंदगी ने लाफ़ानी
सफ़र हयात का गो इक हबाब जैसा है।
खड़े हैं कच्चा घड़ा ले के हाथ में हम भी
नदी का ज़ोर भी 'रहबर` चिनाब जैसा है।
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