हवा में हाँफ़ती उम्मीद की सूखी नदी रख दी
तसल्ली के लिए हालात ने इतनी नमी रख दी ।
ग़लत को हम ग़लत कहते इसी कहने की कोशिश में
सियासत ने अंधेरों में हमारी हर ख़ुशी रख दी ।
खिलौना टूट जाने का उसे अफ़सोस तो होगा
कि जिसने प्यार के हर मोड़ पर दीवानगी रख दी ।
कहीं तो आँख से बचकर कहीं कोई बहाने से
कहीं ख़ामोश रातों में हमारी बेबसी रख दी ।
उसे तो नींद आती है कई सपने सुकूं देते
कि जिसके सामने हमने वफ़ा की रोशनी रख दी ।
मेरे जज़्बात मेरे नाम बिके
उनके ईमान सरे-आम बिके
एक मंडी है सियासत ऎसी
जिसमें अल्लाह बिके राम बिके
पी के बहका न करो यूँ साहब
अब तो मयख़ाने के हर जाम बिके
उनकी बातों का भरोसा कैसा
जिनके मज़मून सुबह-शाम बिके
कैसे इज़हार करूँ उल्फ़त के
मेरे अरमान बिना दाम बिके
मजबूरियाँ के खौफ़ को समझा नहीं गया
चेहरा मेरा था, आईना देखा नहीं गया
जो फिर तमाम रास्ते भटकाव में रहा
वैसे सफ़र के बारे में सोचा नहीं गया
क़ातिल बना दिया मुझे, साबित हुए बिना
सच क्या है और झूठ क्या रक्खा नहीं गया
मौसम की तेज़ धूप में तन्हा न रह सका
वो खुश है उसको धूप में छो़ड़ा नहीं गया
माना कि नींद आँख से कुछ दूर थी मगर
यादों को टूटने से भी रोका नहीं गया!
सदी की तेज़ लू में भी हमें जीने का ग़म होगा
तुम्हारे हाथ का पत्थर वफ़ादारी में कम होगा
समझ लेने की कोशिश में यही हर बार तो होगा
किसी बच्चे के रोने का अकेले में वहम होगा
ये माना रोज़ मेरी ख़्वाहिशें लेती हैं अंगड़ाई
ग़मों से अपना याराना न टूटे, ये भरम होगा
लहू में वक़्त का दामन दिखाएँगे तुम्हें उस दिन
निशाने पर अगर ज़ख़्मी कोई मौसम तो नम होगा
खुद अपने आप से महफूज़ रखने की तमन्ना में
शबे ग़म के अंधेरों में वफ़ाओं पर सितम होगा
हवा खिलाफ़ है या बदगुमान है अब तक
गुज़रती धूप में कैसी थकान है अब तक ।
तमाम अश्क़ को पलकों में क़ैद करने दो
हमारे सब्र का ये इम्तिहान है अब तक ।
अंधेरी रात भी कैसे मुझे डराएगी
मेरा चिराग़ मेरे दरमियान है अब तक ।
किसी किताब में ख़ुशबू तलाशने वालों
दुआ करो कि ये गुलशन जवान है अब तक ।
इधर से होके कोई रास्ता नहीं जाता
पराए खेत में अपना मकान है अब तक ।
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