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» » अना' क़ासमी (दिल के पन्ने ) Ana Kasami (Dil ke Panne )






उससे कहना कि कमाई के न चक्कर में रहे
दौर अच्छा नहीं बेहतर है कि वो घर में रहे

जब तराशे गए तब उनकी हक़ीक़त उभरी
वरना कुछ रूप तो सदियों किसी पत्थर में रहे

दूरियाँ ऐसी कि दुनिया ने न देखीं न सुनीं
वो भी उससे जो मिरे घर के बराबर में रहे

वो ग़ज़ल है तो उसे छूने की ह़ाजत भी नहीं
इतना काफ़ी है मिरे शेर के पैकर में रहे

तेरे लिक्खे हुए ख़त भेज रहा हूँ तुझको
यूँ ही बेकार में क्यों दर्द तिरे सर में रहे

ज़िन्दगी इतना अगर दे तो ये काफ़ी है ’अना’
सर से चादर न हटे पाँव भी चादर में रहे


कैसा रिश्ता है इस मकान के साथ
बात करता हूँ बेज़बान के साथ

आप तन्हा जनाब कुछ भी नहीं
तीर जचता है बस कमान के साथ

हर बुरे वक़्त पर नज़र उट्ठी
क्या तअल्लुक है आसमान के साथ

दुश्मनी थी तो कुछ तो हासिल था
छिन गया सारा कुछ अमान के साथ

थे ज़मीं पर तो ठीक-ठाक था सब
पर बिखरने लगे उड़ान के साथ

एक इंसाँ ही सो रहा है फ़क़त
कुल जहाँ उठ गया अजान के साथ

ना सही मानी हर्फ़ ही से सही
एक निस्बत तो है कुरान के साथ



रोज़ चिकचिक में सर खपायें क्या
फैसला ठीक है निभायें क्या

चश्मेनमभीगी आँख का अजीब मौसम है
शाम,झीलें,शफ़क़लालिमा ,घटायें क्या

बाल बिखरे हुये, ग़रीबां चाक
आ गयीं शहर में बलायें क्या

अश्क़ झूठे हैं,ग़म भी झूठा है
बज़्मेमातम में मुस्कुरायें क्या

हो चुका हो मज़ाक तो बोलो
अपने अब मुद्दआ पे आयें क्या

ख़ाक कर दें जला के महफ़िल को
तेरे बाजू में बैठ जायें क्या

झूठ पर झूठ कब तलक वाइज़मौलाना
झूठ बातों पे सर हिलायें क्या



माने जो कोई बात, तो इक बात बहुत है,
सदियों के लिए पल की मुलाक़ात बहुत है ।

दिन भीड़ के पर्दे में छुपा लेगा हर इक बात,
ऐसे में न जाओ, कि अभी रात बहुत है ।

महिने में किसी रोज़, कहीं चाय के दो कप,
इतना है अगर साथ, तो फिर साथ बहुत है ।

रसमन ही सही, तुमने चलो ख़ैरियत पूछी,
इस दौर में अब इतनी मदारातहमदर्दी बहुत है ।

दुनिया के मुक़द्दर की लक़ीरों को पढ़ें हम,
कहते है कि मज़दूर का बस हाथ बहुत है ।

फिर तुमको पुकारूँगा कभी कोहे 'अना'स्वाभिमानसे,
अय दोस्त अभी गर्मी-ए- हालात बहुत है



तेरी इन आंखों के इशारे पागल हैं
इन झीलों की मौजें,धारे पागल है

चाँद तो कुहनी मार के अक्सर गुज़रा है
अपनी ही क़िस्मत के सितारे पागल हैं

कमरों से तितली का गुज़र कब होता है
गमलों के ये फूल बेचारे पागल हैं

अक्लो खि़रद का काम नहीं है साहिल पर
नज़रें घायल और नज़ारे पागल हैं

शेरो सुखन की बात इन्हीं के बस की है
‘अना’ वना जो दर्द के मारे पागल हैं


ख़बर है दोनों को, दोनों से दिल लगाऊँ मैं,
किसे फ़रेब दूँ, किस से फ़रेब खाऊँ मैं ।

नहीं है छत न सही , आसमाँ तो अपना है,
कहो तो चाँद के पहलू में लेट जाऊँ मैं ।

यही वो शय है, कहीं भी किसी भी काम में लो,
उजाला कम हो तो बोलो कि दिल जलाऊँ मैं ।

नहीं नहीं ये तिरी ज़िद नहीं है चलने की,
अभी-अभी तो वो सोया है फिर जगाऊँ मैं ।

बिछड़ के उससे दुआ कर रहा हूँ अय मौला,
कभी किसी की मुहब्बत न आज़माऊँ मैं ।

हर एक लम्हा नयापन हमारी फ़ितरत है,
जो तुम कहो तो पुरानी ग़ज़ल सुनाऊँ मैं



रोज़ चिकचिक में सर खपायें क्या
फैसला ठीक है निभायें क्या

चश्मेनमभीगी आँख का अजीब मौसम है
शाम,झीलें,शफ़क़लालिमा ,घटायें क्या

बाल बिखरे हुये, ग़रीबां चाक
आ गयीं शहर में बलायें क्या

अश्क़ झूठे हैं,ग़म भी झूठा है
बज़्मेमातम में मुस्कुरायें क्या

हो चुका हो मज़ाक तो बोलो
अपने अब मुद्दआ पे आयें क्या

ख़ाक कर दें जला के महफ़िल को
तेरे बाजू में बैठ जायें क्या

झूठ पर झूठ कब तलक वाइज़मौलाना
झूठ बातों पे सर हिलायें क्या

About dil ke panne

Hi there! I am Hung Duy and I am a true enthusiast in the areas of SEO and web design. In my personal life I spend time on photography, mountain climbing, snorkeling and dirt bike riding.
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