गुज़र गए हैं जो मौसम कभी न आएँगे
तमाम दरिया किसी रोज़ डूब जाएँगे
सफ़र तो पहले भी कितने किये मगर इस बार
ये लग रहा है के तुझ को भी भूल जाएँगे
अलाव ठंडे हैं लोगों ने जागना छोड़ा
कहानी साथ है लेकिन किसे सुनाएँगे
सुना है आगे कहीं सम्तें बाँटी जाती हैं
तुम अपनी राह चुनो साथ चल न पाएँगे
दुआएँ लोरियाँ माओं के पास छोड़ आए
बस एक नींद बची है ख़रीद लाएँगे
ज़रूर तुझ सा भी होगा कोई ज़माने में
कहाँ तलक तेरी यादों से जी लगाएँगे
घरोंदे ख़्वाबों के सूरज के साथ रख लेते
परों में धूप के इक काली रात रख लेते
हमें ख़बर थी ज़बाँ खोलते ही क्या होगा
कहाँ कहाँ मगर आँखों पे हाथ रख लेते
तमाम जंगों का अंजाम मेरे नाम हुआ
तुम अपने हिस्से में कोई तो मात रख लेते
कहा था तुम से के ये रास्ता भी ठीक नहीं
कभी तो क़ाफ़िले वालों की बात रख लेते
ये क्या किया के सभी कुछ गँवा के बैठ गए
भरम तो बंदा-ए-मौला-सिफ़ात रख लेते
मैं बे-वफ़ा हूँ चलो ये भी मान लेता हूँ
भले बुरे ही सही तजरबात रख लेते
अजब रंग आँखों में आने लगे
हमें रास्ते फिर बुलाने लगे
इक अफ़वाह गर्दिश में है इन दिनों
के दरिया किनारों को खाने लगे
ये क्या यक-ब-यक हो गया क़िस्सा-गो
हमें आप-बीती सुनाने लगे
शगुन देखें अब के निकलता है क्या
वो फिर ख़्वाब में बड़बड़ाने लगे
हर इक शख़्स रोने लगा फूट के
के 'अशुफ़्ता' जी भी ठिकाने लगे
परेशाँ हुए थे न हैरान थे
कई दिन से बारिश के इम्कान थे
ये कैसी कहानी सुनाई गई
सभी सुनने वाले पशेमान थे
इशारे में जो अपना घर फूँक दें
कभी शहर में ऐसे नादान थे
सभी वलवले दिल के दिल में रहे
मुसलसल इधर अहद ओ पैमान थे
लरज़ते थे घर से निकलते हुए
कभी राह में इतने मैदान थे
ज़माना हुआ धूप सेंके हुए
बहुत बंद कमरे के अरमान थे
तमाम शह्र से नज़रें चुराए फिरता है
वो अपने शानों पे इक घर उठाए फिरता है
हज़ार बार ये सोचा कि लौट जाएँगे
न जाने क्यों हमें दरिया बहाए फिरता है
हुदूद से जो तजावुज़ की बात करता था
वो अपने सीने में पौदे लगाए फिरता है
थे आज तक इसी धोके में सबसे वक़िफ़ हैं
जिसे भी देखो कोई शै छिपाए फिरता है
अब एतमाद कहाँ तक बहाल रक्खेंगे
कोई तो है जो हमें यूँ नचाए फिरता है
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