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» »Unlabelled » आलोक श्रीवास्तव (दिल के पन्ने ) Alok Shrivastva (Dil ke Panne)







ठीक हुआ जो बिक गए सैनिक मुठ्ठी भर दीनारों में,
वैसे भी तो जंग लगा था, पुश्तैनी हथियारों में।

सर्द नसों में चलते-चलते गर्म लहू जब बर्फ़ हुआ,
चार पड़ौसी जिस्म उठाकर झौंक गए अंगारों में।

खेतों को मुठ्ठी में भरना अब तक सीख नहीं पाया,
यों तो मेरा जीवन बीता सामंती अय्यारों में।

कैसे उसके चाल चलन में पश्चिम का अंदाज़ न हो,
आख़िर उसने सांसें ली हैं, अंग्रेज़ी दरबारों में।

नज़दीकी अक्सर दूरी का कारन भी बन जाती हैं,
सोच समझ कर घुलना मिलना अपने रिश्तेदारों में।

चाँद अगर पूरा चमके, तो उसके दाग खटकते हैं!
एक न एक बुराई तय है सारे इज़्ज़तदारों में।



वही आंगन, वही खिड़की, वही दर याद आता है,
मैं जब भी तन्हा होता हूँ, मुझे घर याद आता है।

मेरे सीने की हिचकी भी, मुझे खुलकर बताती है,
तेरे अपनों को गाँव में, तू अक्सर याद आता है।

जो अपने पास हों उनकी कोई क़ीमत नहीं होती,
हमारे भाई को ही लो, बिछड़कर याद आता है।

सफलता के सफ़र में तो कहाँ फ़ुर्सत कि कुछ सोचें
मगर जब चोट लगती है, मुक़द्दर याद आता है।

मई और जून की गर्मी बदन से जब टपकती है,
नवम्बर याद आता है, दिसम्बर याद आता है


ये सोचना ग़लत है के' तुम पर नज़र नहीं,
मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर, बेख़बर नहीं।

अब तो ख़ुद अपने ख़ून ने भी साफ़ कह दिया,
मैं आपका रहूंगा मगर उम्र भर नहीं।

आ ही गए हैं ख़्वाब तो फिर जाएंगे कहां,
आंखों से आगे इनकी कोई रहगुज़र नहीं।

कितना जिएं, कहां से जिएं और किस लिए,
ये इख़्तियार हम पे' है, तक़्दीर पर नहीं।

माज़ी की राख उलटें तो चिंगारिया मिलें,
बेशक किसी को चाहो मगर इस क़दर नहीं।

About dil ke panne

Hi there! I am Hung Duy and I am a true enthusiast in the areas of SEO and web design. In my personal life I spend time on photography, mountain climbing, snorkeling and dirt bike riding.
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