नज़रों का इक धोखा रखना, कितना मुश्किल होता है
आँखों को आईना करना , कितना मुश्किल होता है
मन की मौत बदन से बढकर, दुःख देती है ऐ लोगो
अक्सर यूँ बेबात ही मरना, कितना मुश्किल होता है
दर्दों-ग़म के इस मेले में, सबसे हम हँस- हँस के मिले
यूँ भी ख़ुद को ज़िन्दा रखना, कितना मुश्किल होता है
फूलों से हम जब गुज़रे, तो हमको ये मालू’म हुआ
काँटों की राहों पर चलना, कितना मुश्किल होता है
हर इक ठोकर ने हमको , ये पाठ पढ़ाया है यारो
गिर-गिरके हर बार सँभलना, कितना मुश्किल होता है
नज़रों से गिरने में कोई, हैरानी की बात नहीं
पर नज़रों में गिर कर उठना, कितना मुश्किल होता है
जिस घर का इकलौता बेटा जंग में जां क़ुर्बान करे
उस चौखट पे दिये का जलना कितना मुश्किल होता है
सामने दरिया, और समुन्दर, बहते हों कितने ‘पूनम’
ख़ुद को फ़िर भी प्यासा रखना, कितना मुश्किल होता है
2.
कभी आँसुओं से नहा गयी, कभी मैं ख़ुशी से सँवर गयी||
तेरा प्यार फिर भी न पा सकी, मेरी उम्र यूँ ही गुज़र गयी||
न ही तुझसे तुझको चुरा सकी, न ही दिल की दुनिया बसा सकी|
थीं बहुत गुनाह की ख़्वाहिशें, हुआ ये कि ख़ुद से ही डर गयी||
मेरा मुझपे कोई न हक़ रहा, तेरा इश्क़ मुझको ही डस रहा|
कभी दिल में तेरे समा गयी, कभी दिल से तेरे उतर गयी ||
ये उदासियाँ मुझे तुमने दीं, मेरे आँसुओं का सबब भी तुम|
ये भी एक सच मेरे हमसफ़र, मैं तेरी ही आँखों में भर गयी||
ये मुहब्बतों का ख़ुमार था जो हमारे दिल पे सवार था|
तू भी रेज़ा-रेज़ा पिघल गया,मैं भी हौले-हौले बिखर गयी||
तेरी तल्ख़ियां भी क़ुबूल थीं, मेरे चारागर, मे रे हमनवा!
थी बहुत ही कड़वी दवा तेरी, ये ग़ज़ब का कर भी असर गयी||
मिले बाद जब कई साल के ,बड़ी शिद्दतों से कहा गया|
उन्हें बांकपन में दिखी थी मैं, कि नज़र में तब से ठहर गयी||
मुझे मेरे अपनों ने डस लिया, मेरे ऐतबार का खूँ किया|
मेरी शुहरतों का ये हाल था मैं जिधर गयी वो उधर गयी||
वो जो दूर थे बड़ी चाह थी, जो मिले तो ख़त्म है आरज़ू|
वो नदी थी तेज़ उफान की, बड़े हौले-हौले उतर गयी ||
तू हर एक दिल की पुकार थी, तुझे चाहते थे यहाँ सभी|
तू वही है क्या मुझे ये बता , तेरी कमसिनी वो किधर गयी|| ..
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