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» » ज़िया' ज़मीर (दिल के पन्ने ) Ziya Zameer (Dil ke Panne )






तू अमीरे शह्र है, तू मोहतरम अपनी जगह
ठीक हैं जैसे भी हैं हम अहले-ग़म अपनी जगह

तेरी बख़शीश से नहीं बढ़कर ज़माने की अता
और भी हैं ग़म कई पर तेरा ग़म अपनी जगह

तेरी ख़ातिर मुस्कुराना फर्ज़ है हम पर मगर
क़हक़हे अपनी जगह आँखों का नम अपनी जगह

इश्क़ में हर एक मंज़िल हमने तय कर ली मगर
पहले-पहले प्यार का पहला क़दम अपनी जगह

यह तो सच है हमसफ़र अब तेरा कोई और है
तू है मेरे साथ अब भी यह भरम अपनी जगह

यार तू तो जाने कब का छोड़ बैठा है हमें
तेरी यादें हैं मगर साबित क़दम अपनी जगह

हमने यह माना बहुत कुछ हैं इनायाते जहॉ
ऐ ‘ज़िया’ उसकी मगर चश्मे-करम अपनी जगह

अना की चादर उतार फेंके मोहब्बतों के चलन में आए
कभी तो ख़ुद को बयान करने तू यार मेरी शरन में आए

कभी तो आए वो एक लम्हा कि फ़र्क कोई रहे न हममें
तेरे गुलाबी बदन की ख़ुशबू कभी तो मेरे बदन में आए

चहक उठे तो लगे कि जैसे चटक रहीं हों हज़ार कलियाँ
अगर छिपे तो वो सिर्फ़ ऐसे कि चाँद जैसे गहन में आए

ठहर न जाए गुलाब में ही, सिमट न जाए हिजाब में ही
वो मेरी साँसों की सीढ़ियों से उतर के मेरे बदन में आए

मेरी सी हसरत, मिलन की चाहत कभी तो रूख़ से अयाँ हो तेरे
मोहब्बतों की कोई इबारत तेरी जबीं की शिकन में आए

मज़ा तो जब है हमारा जज़्बा तेरे गुमाँ को यक़ीन कर दे
मज़ा तो जब है तेरी तमाज़त हमारे भी तन-बदन में आए


इस पहेली का कोई तू ही बता हल जानाँ
पार होता ही नहीं यादों का जंगल जानाँ

नींद आती है कहाँ ख़्वाब उतरते हैं कहाँ
आंखें रहती हैं तेरी याद में जल-थल जानाँ

पिछले मौसम में तेरा जिस्म छुआ था हमने
अब भी लगता है कि हाथों में है मख़मल जानाँ

मेरी साँसों को ज़रा फिर से मुअत्तर कर दे
अपनी साँसों का ज़रा भेज दे सन्दल जानाँ

मंज़िलों तक तुझे चलने को कहा है किसने
बात दो-चार क़दम की है, ज़रा चल जानाँ

ख़्वाब पलकों की मुंडेरों पे पड़े हैं बेहाल
राह ताबीर की तकते हैं ये पल-पल जानाँ


रंग तितली के खिले रुत भी सुहानी आई
आ भी जा यार कि फूलों पे जवानी आई

अब कहीं जा के खुले ज़ब्त के मानी हम पर
अब कहीं जा के हमें बात छिपानी आई

जाने क्या बात हुई अब के बरस यार हमें
याद बे-साख़्ता हर बात पुरानी आई

आज फिर चाँद पे परियों का लगा है मेला
आज नानी की फिर एक याद कहानी आई

आज फिर ज़िक्र छिड़ा गुज़रे हुए लम्हों का
आज साँसों में फिर एक ख़ुशबू पुरानी आई

आज फिर टूटते देखा कोई रिश्ता हमने
आज भूली हुई फिर याद कहानी आई

हो गया फिर तेरे आने का यक़ीं-सा हमको
ले के ख़ुशबू तेरी फिर रात की रानी आई

About dil ke panne

Hi there! I am Hung Duy and I am a true enthusiast in the areas of SEO and web design. In my personal life I spend time on photography, mountain climbing, snorkeling and dirt bike riding.
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