Header ads

» » अशोक रावत (दिल के पन्ने )Ashok Ravat (Dil ke Panne )




डर मुझे भी लगा फ़ासला देखकर,
पर में बढ़ता गया रास्ता देखकर.


ख़ुद ब ख़ुद मेरे नज़दीक आती गई,
मेरी मंज़िल मेरा हौसला देखकर.


मैं परिंदों की हिम्मत पे हैरान हूँ,
एक पिंजरे को उड़ता हुआ देखकर.


खुश नहीं हैं अॅधेरे मेरे सोच में,
एक दीपक को जलता हुआ देखकर.


डर सा लगने लगा है मुझे आजकल,
अपनी बस्ती की आबो- हवा देखकर.


किसको फ़ुर्सत है मेरी कहानी सुने,
लौट जाते हैं सब आगरा देखकर


न ये तूफ़ान ही अपने कभी तेवर बदलते हैं
न इनके ख़ौफ़ से अपना कभी हम घर बदलते हैं.


न मन में ख़ौफ़ शीशों के न पश्चाताप में पत्थर,
न शीशे ही बदलते हैं, न ये पत्थर बदलते हैं.


समझ में ये नहीं आता, मंज़र बदलते हैं.


अजी इन टोटकों से क्या किसी को नीद आती है,
कभी तकिया बदलते हैं, कभी चादर बदलते हैं.


बंदूकों से प्रश्न कभी हल होते हैं,
लोग इस तरह फिर क्यों पागल होते हैं.


इतना गुस्सा आसमान पर आखिर क्यों,
इसके वश में क्या सब बादल होते हैं.


हिम्मत कर और आगे बढ़, ज़्यादा मत सोच,
हिम्मत्वाले कम ही असफल होते हैं.


खोट निकाला करते हैं वो राहों में ,
जिनके सोच समझ में जंगल होते हैं.


उन पर आकर नहीं बैठते पक्षी भी,
अगर विषैले पेड़ों के फल होते हैं.


पहले होते थे होटल भी घर जैसै,
लेकिन घर अब होटल जैसै होते हैं.



About dil ke panne

Hi there! I am Hung Duy and I am a true enthusiast in the areas of SEO and web design. In my personal life I spend time on photography, mountain climbing, snorkeling and dirt bike riding.
«
Next
Newer Post
»
Previous
Older Post

No comments:

Leave a Reply