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» » फ़िराक़ जलालपुरी (दिल के पन्ने ) Firak Jalalpuri (Dil ke Panne )


तू इधर उधर की न बात कर ये बता कि क़ाफ़िला क्यूँ लुटा
मुझे रहज़नों से गिला नहीं तिरी रहबरी का सवाल है

सनमख़ाने, हरम और मैकदे आवाज़ देते हैं
मुसाफ़िर को हज़ारों रास्ते आवाज़ देते हैं

कली के लब खुले हैं और गुलों के होंठ लरज़ीदा
हवा में ये खड़े हो कर किसे आवाज़ देते हैं

मैं गहरे पानियों की तह में इक फेंका हुआ कंकर
मुझे ऊपर ही ऊपर दायरे आवाज़ देते हैं

भला क्यों घर के अंदर से कोई बाहर नहीं आता
किसी पत्थर को जैसे हम खड़े आवाज़ देते हैं

यहाँ दुनिया जकड़ती जाये है मुझको शिकंजे में
वहाँ घर में हज़ारों मस’अले आवाज़ देते हैं

ये किस की घुप अँधेरों में सदा-ए-अलमदद गूँजी
ये जंगल है कि सन्नाटे मुझे आवाज़ देते हैं

मेरे हाथों में गुज़रे मौसमों की एक चिट्ठी है
कई चेहरे समंदर पार से आवाज़ देते हैं

वो सूनी छत, ये दालानें, वो कमरा और ये आँगन
तू घर में जब नहीं रहता, तुझे आवाज़ देते हैं

About dil ke panne

Hi there! I am Hung Duy and I am a true enthusiast in the areas of SEO and web design. In my personal life I spend time on photography, mountain climbing, snorkeling and dirt bike riding.
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4 comments:

  1. तू इधर उधर...
    ये शहाब जाफरी की रचना है आप ने यूज किया है या आप की ही है.

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  2. अति सुंदर👌😥

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  3. Ye sher shahab jafari sab ka h

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