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» » अब्दुल अहद ‘साज़’( दिल के पन्ने) Abdul Ahad Saaz (Dil ke Panne)





मैं ने कब चाहा कि मैं उस की तमन्ना हो जाऊँ
ये भी क्या कम है अगर उस को गवारा हो जाऊँ

मुझ को ऊँचाई से गिरना भी है मंज़ूर, अगर
उस की पलकों से जो टूटे, वो सितारा हो जाऊँ

लेकर इक अज़्मपक्का इरादा उठूँ रोज़ नई भीड़ के साथ
फिर वही भीड़ छटे और मैं तनहा हो जाऊँ

जब तलक महवे-नज़रदेखने में मगन हूँ , मैं तमाशाईदर्शक हूँ
टुक निगाहें जो हटा लूं तो तमाशा हो जाऊँ

मैं वो बेकार सा पल हूँ, न कोइ शब्द, न सुर
वह अगर मुझ को रचाले तो ‘हमेशा’ हो जाऊँ

आगहीज्ञान मेरा मरज़बीमारी भी है, मुदावा भी है ‘साज़’
जिस से मरता हूँ, उसी ज़हर से अच्छा हो जाऊँ


मौत से आगे सोच के आना फिर जी लेना
छोटी छोटी बातों में दिलचस्पी लेना

जज़्बों के दो घूँट अक़ीदोंश्रद्धाओं के दो लुक़मेनिवाले
आगे सोच का सेहरारेगिस्तान है, कुछ खा-पी लेना

नर्म नज़र से छूना मंज़र की सख़्ती को
तुन्द हवा से चेहरे की शादाबीताज़गी लेना

आवाज़ों के शहर से बाबा ! क्या मिलना है
अपने अपने हिस्से की ख़ामोशी लेना

महंगे सस्ते दाम , हज़ारों नाम थे जीवन
सोच समझ कर चीज़ कोई अच्छी सी लेना

दिल पर सौ राहें खोलीं इनकार ने जिसके
‘साज़’ अब उस का नाम तशक्कुरशुक्रिया / धन्यवाद से ही लेना


जागती रात अकेली-सी लगे
ज़िंदगी एक पहेली-सी लगे

रुप का रंग-महल, ये दुनिया
एक दिन सूनी हवेली-सी लगे

हम-कलामी तेरी ख़ुश आए उसे
शायरी तेरी सहेली-सी लगे

मेरी इक उम्र की साथी ये ग़ज़ल
मुझ को हर रात नवेली-सी लगे

रातरानी सी वो महके ख़ामोशी
मुस्कुरादे तो चमेली-सी लगे

फ़न की महकी हुई मेंहदी से रची
ये बयाज़ उस की हथेली-सी लगे

About dil ke panne

Hi there! I am Hung Duy and I am a true enthusiast in the areas of SEO and web design. In my personal life I spend time on photography, mountain climbing, snorkeling and dirt bike riding.
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