क़ाएम' चाँदपुरी (दिल के पन्ने ) Qayem Chandpuri (Dil ke Panne )
दर्द-ए-दिल कुछ कहा नहीं जाता
आह चुप भी रहा नहीं जाता
रू-ब-रू मेरे गैर से तू मिले
ये सितम तो सहा नहीं जाता
शिद्दत-ए-गिर्या से मैं ख़ून में कब
सर से पा तक नहा नहीं जाता
हर दम आने से मैं भी हूँ नादिम
क्या करूँ पर रहा नहीं जाता
माना-ए-गिर्या किस की ख़ू है के आज
आँसूओं से बहा नहीं जाता
गरचे ‘काएम’ असीर-ए-दाम हूँ लेक
मुझ से ये चहचहा नहीं जाता
दर्द पी लेते हैं और दाग़ पचा जाते हैं
याँ बला-नोश हैं जो आए चढ़ा जाते हैं
देख कर तुम को कहीं दूर गए हम लेकिन
टुक ठहर जाओ तो फिर आप में आ जाते हैं
जब तलक पाँव में चलने की है ताकत बाकी
हाल-ए-दिल आ के कभू तुझ को दिखा जाते हैं
कौन हो गुँचा-सिफत अपने सबा को मरहून
जैसे तंग आए थे वैसे ही खफा जाते हैं
रहियो हुश्यार तू लप-झप से बुताँ की ‘काएम’
बात की बात में वाँ दिल को उड़ा जाते है
दिल पा के उस की जुल्फ में आराम रह गया
दरवेश जिस जगह कि हुई शाम रह गया
सय्याद तू तो जा है पर उस की भी कुछ ख़बर
जो मुर्ग-ए-ना-तवाँ कि तह-ए-दाम रह गया
किस्मत तो देख टूटी है जा कर कहाँ कमंद
कुछ दूर अपने हाथ से जब बाम रह गया
नै तुझ पे वो बहार रही और न याँ वो दिल
कहने को नेक ओ बद के इक इल्ज़ाम रह गया
मौकूफ कुछ कमाल पे याँ काम-ए-दिल नहीं
मुझ को ही देख लेना के ना-काम रह गया
‘काएम’ गए सब की ज़बाँ से जो थे रफीक
इक बे-हया मैं खाने को दुश्नाम रह गया
तेरी ज़बाँ से ख़स्ता कोई ज़ार है कोई
प्यारे ये नहव ओ सर्फ ये गुफ्तार है कोई
ठोकर में हर कदम की तड़पते हैं दिल कई
ज़ालिक इधर तो देख ये रफ्तार है कोई
जूँ शाख़-ए-गुल है फ्रिक में मेरी शिकस्त की
मेरा गर उस चमन में हवा-दार है कोई
ज़ालिम ख़बर तो ले कहीं ‘काएम’ ही ये न हो
नालान ओ मुज़्तरिब पस-ए-दीवार है कोई
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