अगर मैं उन की निगाहों से गिर गया होता
तो आज अपनी नज़र से उतर गया होता
तेरे फ़िराक़ ने की ज़िंदगी अता मुझ को
तेरा विसाल जो मिलता तो मर गया होता
जो तुम ने प्यार से आवाज़ मुझ को दी होती
रह-ए-हयात से हँस कर गुज़र गया होता
जो झूट-मूट ही तुम मुझ को अपना कह देते
तो मेरे प्यार का हर क़र्ज़ उतर गया होता
जो इक निगाह-ए-करम उन की पड़ती ऐ 'दानिश'
तो मेरा बिगड़ा मुक़द्दर सँवर गया होता
क्या ख़बर थी मुंहरिफ़ अहल-ए-जहाँ हो जाएँगे
होते होते मेहर-बाँ ना-मेहर-बाँ हो जाएँगे
मुस्कुरा कर उन का मिलना और बिछड़ना रूठ कर
बस यही दो लफ़्ज़ इक दिन दास्ताँ हो जाएँगे
इश्क़ सादिक़ है तो अपने अज़्म-ए-मंज़िल की क़सम
हर क़दम पर साथ लाखों कारवाँ हो जाएँगे
ये मआल-ए-इश्क़ होगा ये किसे मालूम था
दिल के नग़मे एक दिन आह ओ फ़ुग़ाँ हो जाएँगे
गर तरन्नुम पर ही 'दानिश' मुंहसिर है शाएरी
फिर तो दुनिया भर के शाएर नग़मा-ख़्वाँ हो जाएँगे
वाइज़ तू अगर उन के कूचे से गुज़र जाए
फ़िर्दौस का मंज़र भी नज़रों से उतर जाए
रूदाद-ए-शब-ए-ग़म यूँ डरता हूँ सुनाने से
महफ़िल में कहीं उन की सूरत न उतर जाए
इक वादा-ए-फ़र्दा की उम्मीद पे ज़िंदा हूँ
ऐ काश किसी सूरत ये रात गुज़र जाए
काबे ही के रस्ते में मै-ख़ाना भी पड़ता है
उलझन में ये रह-रौ है जाए तो किधर जाए
तुम उन से मिलो 'दानिश' ये ध्यान रहे लेकिन
ख़ुद्दारी-ए-फ़ितरत का एहसास न मर जाए
ज़र्रे ज़र्रे में महक प्यार की डाली जाए
बू तअस्सुब की हर इक दिल से निकाली जाए
अपने दुश्मन को भी ख़ुद बढ़ के लगा लो सीने
बात बिगड़ी हुई इस तरह बना ली जाए
आप ख़ुश हो के अगर हम को इजाज़त दे दें
आप के नाम से इक बज़्म सजा ली जाए
हो के मजबूर ये बच्चों को सबक़ देना है
अब क़लम छोड़ के तलवार उठा ली जाए
सोच कर अर्ज़-ए-तलब वक़्त के सुल्तान से कर
माँगने वाले तेरी बात न ख़ाली जाए
ज़िंदगी कर गई तूफ़ाँ के हवाले मुझ को
ऐ अजल कशमकश-ए-ग़म से छुड़ा ले मुझ को
कुछ तो ले काम तग़ाफ़ुल से वफ़ा के पैकर
ये तेरा प्यार कहीं मार न डाले मुझ को
वाह री क़िस्मत के कहाँ मंज़िल-ए-मक़सूद मिली
जब मज़ा देने लगे पाँव के छाले मुझ को
आख़िरी वक़्त तलक साथ अँधेरों ने दिया
रास आते नहीं दुनिया के उजाले मुझ को
कोई भी मोहसिन ओ रह-बर ही नहीं है मेरा
यूँ तो 'दानिश' हैं बहुत चाहने वाले मुझ को
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