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» » ज़क़ी तारिक़ (दिल के पन्ने ) Zaki Tareek (Dil ke Panne )




भरे तो कैसे परिंदा भरे उड़ान कोई
नहीं है तीर से ख़ाली यहाँ कमान कोई

थीं आज़माइशें जितनी तमाम मुझ पे हुईं
न बच के जाएगा अब मुझ से इम्तिहान कोई

ये तोता मैना के क़िस्से बहुत पुराने हैं
हमारे अहद की अब छेड़ो दास्तान कोई

नए ज़माने की ऎसी कुछ आँधियाँ उट्ठीं
रहा सफ़ीने पे बाक़ी न बादबान कोई

बिखर के रह गईं रिश्तों की सारी ज़ंजीरें
बचा सका न रिवायत को ख़ानदान कोई

'ज़की' हमारा मुक़द्दर हैं धूप के ख़ेमे
हमें न रास कभी आया साएबान कोई


इताब ओ क़हर का हर इक निशान बोलेगा
मैं चुप रहा तो शिकस्ता मकान बोलेगा

अभी हुजूम है उस को जुलूस बनने दे
तेरे ख़िलाफ़ हर इक बे-ज़ुबान बोलेगा

हमारी चीख़ कभी बे-असर नहीं होगी
ज़मीं ख़मोश सही आसमान बोलेगा

जो तुम सुबूत न दोगे अज़ाब के दिन का
गवाह बन के ये सारा जहाँ बोलेगा

कभी तो आएगा वो वक़्त भी 'ज़की' तारिक़
यक़ीन बन के हमारा गुमान बोलेगा


नूर ये किस का बसा है मुझ में
रौशनी हद से सिवा है मुझ में

हर्फ़-ए-हक़ की सी सदा है मुझ में
कौन ये बोल रहा है मुझ में

किस ने दस्तक दर-ए-दिल पर दी है
शोर ये कैसा बपा है मुझ में

रोज़ सुनता हूँ मैं हँसने की सदा
कौन ये मेरे सिवा है मुझ में

क्या मिलेगी मेरे फ़न की मुझे दाद
कुछ ज़्यादा ही अना है मुझ में

मुस्तक़िल एक खटक रूह में है
ख़ार बन कर वो चुभा है मुझ में

आप तस्लीम करें या न करें
आप सा कोई बसा है मुझ में

मेरा हम-ज़ाद है 'तारिक़' साहब
जो 'ज़की' बन के छुपा है मुझ में


सिमटे हुए जज़्बों को बिखरने नहीं देता
ये आस का लम्हा हमें मरने नहीं देता

क़िस्मत मेरी रातों की सँवरने नहीं देता
वो चाँद को इस घर में उतरने नहीं देता

करती है सहर ज़र्द गुलाबों की तिजारत
मेयार-ए-हुनर ज़ख़्म को भरने नहीं देता

बादल के सिवा कौन है हम-दर्द रफ़ीक़ो
त्रिशूल सी किरनों को बिखरने नहीं देता

आँखों के दरीचे भी 'ज़की' उस ने किए बंद
सूरज को समंदर में उतरने नहीं देता


तेरे बग़ैर कटे दिन न शब गुज़रती है
हयात किस से कहूँ कैसे अब गुज़रती है

गुमान होता है मुझ को तुम्हारे आने का
हवा इधर से दबे पाँव जब गुज़रती है

हमारा क्या है किसी तौर कट ही जाएगी
सुकून से उन की तो शाम-ए-तरब गुज़रती है

मुझे वो लम्हा क़यामत से कम नहीं होता
कोई कराह समाअत से जब गुज़रती है

गुज़र रहा हूँ जिस एहसास के अज़ाब से मैं
क़यामत ऐसी किसी दिल पे कब गुज़रती है

ये राह-ए-शौक़ है कुछ एहतियात है लाज़िम
'ज़की' सबा भी यहाँ बा-अदब गुज़रती है

About dil ke panne

Hi there! I am Hung Duy and I am a true enthusiast in the areas of SEO and web design. In my personal life I spend time on photography, mountain climbing, snorkeling and dirt bike riding.
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