जब कोई सर किसी दीवार से टकराता है
अपना टूटा हुआ बुत मुझको नज़र आता है
ख़ूब निस्बत है बहारों से मेरी वहशत को
फूल खिलते हैं तो दामन का ख़्याल आता है
तुम जब आहिस्ता से लब खोल के हँस देते हो
एक नग्मा मेरे अहसास में घुल जाता है
कितने प्यारे हैं तेरे नाम के दो सादा हरफ़
दिल जिन्हें गोशा-ए-तन्हाई में दोहराता है
आप से कोई तआरुफ़ तो नहीं है लेकिन,
आप को देख के कुछ याद सा आ जाता है
हाय क्या जानिए किस हाल में होगा कोई
आज रह रह के जो दिल इस तरह घबराता है
आप कहते हैं तो जी लेता है तलअत वरना,
कौन कमबख्त यहाँ साँस भी ले पाता है
घाट कब उतरी हमारी नाव भी,
धुल गए जब साहिलों के चाव भी।
नद्दियों तुम भे ज़रा दम साध लो।
भर चुके कच्चे घडों के घाव भी।
आरज़ू ग़र्काब होती देख कर,
बह गये कच्चे घडों के घाव भी।
मैं तो मिटटी का खिलौना ही सही,
तुम मेरी खातिर कभी चिल्लाओ भी।
भोग ही लेते किए की हम सज़ा,
काश चल जाता हमारा दाव भी।
बज़्म से जाना ही था वरना हमें,
क्या बुरा था आप का बर्ताव भी।
तुम यहीं सर थाम कर बैठे रहो,
शहर में तो हो चुका पथराव भी।
यह ठिठुरती शाम यह शिमला की बर्फ।
दोस्तों! जेबों से बाहर आओ भी।
तन बदल कर हमसे तलअत ने कहा,
क्यों खडे हो अब यहाँ से जाओ भी।
सूरज को डूबने से बचाओ कि गावों में,
तालाब सूख जाएगा बरगद की छाओं में।
उतरे गले से ज़हर समंदर का तो बताएं
गंगा कहाँ छिपी है हमारी जटाओं में
क्या ही बुरा था नूर का चस्का कि दोस्तो
हम जल बुझे हयात कि अंधी गुफाओं में
सर से कुछ इस तरह वो हथेली जुदा हुई
सुर्खी-सी फैलने लगी चारों दिशाओं में
छुटता नहीं है जिस्म से यह गेरुआ लिबास,
मिलते नहीं हैं राम भरत को खड़ावों में
दिल तो खुशी के मारे परिंदा- सा हो गया,
देखा जो हमने चाँद को छुप कर घटाओं में
रोज़े-अज़ल ख़ुदा से अजब वास्ता पड़ा
तुझ बिन भटक रहे हैं हम अब तक ख़लाओं में
तलअत हरेक शख्स कहीं खो के रह गया
गूंजे जब आँसुओं के तराने फ़ज़ाओ में
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