Header ads

» »Unlabelled » निशा गुप्ता (दिल के पन्ने ) Nisha Gupta (Dil ke panne )


1नारी

नारी में अक्ल बहुत है भारी
पुरूष न समझा उसकी लाचारी,
मान लिया सिर्फ एक खिलौना
चाहे जैसे खेल खेलना ।

क्यों नारी संग भेद करे
क्यों समझे छोटा उसको,
हृदय दोनों का एक समान
फिर क्यों नारी का अपमान.।

पुरूष नारी का भेद हटा दो
समझो केवल मानव सबको,
फिर देखो नारी का रूप
कितना ज्ञान कितना स्वरूप ।

2.नारी  की बेड़ियाँ

मुट्ठी भर सबल नारियों से,
नारी नहीं हो सकती सबला।
देखो जाकर हर गली मोहल्ले,
नारी की क्या हो रही दुर्दशा ।

है यह पुरूष प्रधान समाज,
नारी को क्या महत्त्व देगा ।
पैरों  तले  रौंद कर  अपने,
जख्मों से भरा उपहार देगा ।

वस्त्र हटा के अंग देख लो,
किसी तुम दुखिया नारी का।
रक्त वर्ण से चित्रित होगा,
इतिहास उस दुखियारी का।

जीवन में दुख कितने झेलती,
तुम उसको क्या समझोगे  ?
तुमने तो  सिर्फ कष्ट दिया है,
कब तुम उसको बक्शोगे।

चाहते जानना उसकी पीड़ा,
तो लेना होगा नारी जन्म ।
बंधी कैसे वह कर्तव्यों से,
कैसे कटता उसका हर दिन।

सब कहते नारी सबला है,
कहाँ है वह नारी का रूप ?
रात कटती पीड़ा में उसकी
दिन में सहती सड़क की धूप।

नारी का अपना वजूद कहाँ ?
जीवन में उसके  विश्राम कहाँ ?
उम्र  भर  रहती  निर्भर,
पिता, पुत्र पति के  ऊपर ।

होता  कहाँ नारी का घर  ?
बीता बचपन पिता के घर ।
जवानी बीती पति के घर,                    
बुढ़ापा कटे  पुत्र के घर ।

कब कटेगीं उसकी बेड़ियाँ ?
कब होगी सच  में  आजाद ?
मना लो लाख तुम दिवस नारी,              
पर है नारी अब भी  बेचारी ।

3.बदमिजाज हवा

दरवाजा हिलते ही
दिल थम गया
सोचा -
शायद कोई आ गया
अजीज अपना,
पर यह क्या
यह तो मदमस्त हवा थी
जो गाहे बगाहे
किसी का भी                                  
दरवाजा खटखटा
बेचैन कर देती है।
आस के दीपक को
बेरहमी से बुझा देती है ।
आज इसे मिल गया
मेरा घर शरारत के लिए
नहीं मालूम इसको
इंतजार क्या होता है
कैसा होता है  ?
नहीं करना पड़ा कभी इसको
किसी अपने का इंतजार,
यह तो बिंदास घूमती है
इस घर से उस घर
खटखटा के दरवाजा
किसी का -
अठखेलियां करती है।
बेदर्दी ने खटका कर,                                
 एक बूढ़ी मां का दरवाजा
कर दिया व्याकुल उसको
लौट आया विदेश से बेटा
बूढ़े अकेले पड़े शरीर में
स्पंदन हो गया ।
वर्षों बाद देखने के लिए बेटे को
आँखें चमक उठी,
ढूंढती हुई लाठी
पहुँची दरवाजे तक
पर यह क्या -
वही मदमिजाज हवा खड़ी
मुस्कुरा रही थी ।
टूट गईं माँ की साँसे
वहीं गिर पड़ी धरती पर
खुली रह गईं आँखें
पुत्र को निहारने के लिए,
उठा था एक हाथ
देने के लिए आशीर्वाद ।

4.अलसाई कली

उठी जब अलसाई कली
अंगड़ाई लेकर
देखकर कोमल नरम किरणें
आ रहीं जो
बरगद से छन कर ,
जब पड़ी मुखमंडल पर
वह सकुचाई शर्मायी सी
विकिरण संकुचन के बीच
हँसी खिल खिलाकर
पंखुड़ियाँ खुली धीमे-धीमे
ले लिया सुंदर रूप ,
कुदरत ने भर दिया रंग
दे दिया यौवन
अर्द्ध गुलाबी, अर्द्ध लाल ,
जाल बिछाया किरणों ने जब
लगी ओस की बूँदें सूखने
आया सुगंधित समीर
बदल गयी चाल
पुष्प बनी कलिका
मुस्कुराती मधुर मधुर
लगी झूमने मंद-मंद
उड़ चला तीव्र वेग से
अलसाया मदमस्त भ्रमर
लगा कली पर मंडराने ,
उलझी कली प्रेम जाल में
दे दिया आश्रय भ्रमर को
दिन ढले मुरझाई कली
नहीं उड़ा भ्रमर नभ में
हो गया बंद कली कोष में
डर नहीं मृत्यु का उसको
करता वह सच्चा प्रेम कली से
हुआ प्रात: अरूणोदय
कमल कोष को किया स्पर्श
छन छनाती किरणों ने
खुली पंखुड़ी उड़ चला भ्रमर
आकाश मार्ग में
दोनों का प्रेम अद्भुत असीम
देता सीख सृष्टि के मन में ।


About dil ke panne

Hi there! I am Hung Duy and I am a true enthusiast in the areas of SEO and web design. In my personal life I spend time on photography, mountain climbing, snorkeling and dirt bike riding.
«
Next
Newer Post
»
Previous
Older Post

No comments:

Leave a Reply