नुमाइश के लिए गुलकारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
लड़ाई की मगर तैयारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
मुलाक़ातों पे हँसते, बोलते हैं, मुस्कराते हैं
तबीयत में मगर बेज़ारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
खुले रखते हैं दरवाज़े दिलों के रात-दिन दोनों
मगर सरहद पे पहरेदारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
उसे हालात ने रोका मुझे मेरे मसायलसमस्याओं ने
वफ़ा की राह में दुश्वारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
मेरा दुश्मन मुझे तकता है, मैं दुश्मन को तकता हूँ
कि हायलबाधक राह में किलकारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
मुझे घर भी बचाना है वतन को भी बचाना है
मिरे कांधे पे ज़िम्मेदारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
हँसते हुए माँ बाप की गाली नहीं खाते
बच्चे हैं तो क्यों शौक़ से मिट्टी नहीं खाते
हो चाहे जिस इलाक़े की ज़बाँ बच्चे समझते हैं
सगी है या कि सौतेली है माँ बच्चे समझते हैं
हवा दुखों की जब आई कभी ख़िज़ाँ की तरह
मुझे छुपा लिया मिट्टी ने मेरी माँ की तरह
सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे ‘राना’
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते
सर फिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जाँ कहते हैं
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं
मुझे बस इस लिए अच्छी बहार लगती है
कि ये भी माँ की तरह ख़ुशगवार लगती है
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
भेजे गए फ़रिश्ते हमारे बचाव को
जब हादसात माँ की दुआ से उलझ पड़े
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
तार पर बैठी हुई चिड़ियों को सोता देख कर
फ़र्श पर सोता हुआ बेटा बहुत अच्छा लगा
इस चेहरे में पोशीदा है इक क़ौम का चेहरा
चेहरे का उतर जाना मुनासिब नहीं होगा
अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की ‘राना’
माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है
मुसीबत के दिनों में हमेशा साथ रहती है
पयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है
पुराना पेड़ बुज़ुर्गों की तरह होता है
यही बहुत है कि ताज़ा हवाएँ देता है
किसी के पास आते हैं तो दरिया सूख जाते हैं
किसी के एड़ियों से रेत का चश्मा निकलता है
जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा
देख ले ज़ालिम शिकारी ! माँ की ममता देख ले
देख ले चिड़िया तेरे दाने तलक तो आ गई
मुझे भी उसकी जदाई सताती रहती है
उसे भी ख़्वाब में बेटा दिखाई देता है
मुफ़लिसी घर में ठहरने नहीं देती उसको
और परदेस में बेटा नहीं रहने देता
गले मिलने को आपस में दुआयें रोज़ आती हैं
अभी मस्जिद के दरवाज़े पे माएँ रोज़ आती हैं
कभी —कभी मुझे यूँ भी अज़ाँ बुलाती है
शरीर बच्चे को जिस तरह माँ बुलाती है
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई
ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
मेरा खुलूस तो पूरब के गाँव जैसा है
सुलूक दुनिया का सौतेली माओं जैसा है
रौशनी देती हुई सब लालटेनें बुझ गईं
ख़त नहीं आया जो बेटों का तो माएँ बुझ गईं
वो मैला—सा बोसीदा—सा आँचल नहीं देखा
बरसों हुए हमने कोई पीपल नहीं देखा
कई बातें मुहब्बत सबको बुनियादी बताती है
जो परदादी बताती थी वही दादी बताती है
हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिए
माँ ! हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे
हवा उड़ाए लिए जा रही है हर चादर
पुराने लोग सभी इन्तेक़ाल करने लगे
ऐ ख़ुदा ! फूल —से बच्चों की हिफ़ाज़त करना
मुफ़लिसी चाह रही है मेरे घर में रहना
हमें हरीफ़ों की तादाद क्यों बताते हो
हमारे साथ भी बेटा जवान रहता है
ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे
माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे
जब भी देखा मेरे किरदार पे धब्बा कोई
देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई
ख़ुदा करे कि उम्मीदों के हाथ पीले हों
अभी तलक तो गुज़ारी है इद्दतों की तरह
घर की दहलीज़ पे रौशन हैं वो बुझती आँखें
मुझको मत रोक मुझे लौट के घर जाना है
यहीं रहूँगा कहीं उम्र भर न जाउँगा
ज़मीन माँ है इसे छोड़ कर न जाऊँगा
स्टेशन से वापस आकर बूढ़ी आँखें सोचती हैं
पत्ते देहाती रहते हैं फल शहरी हो जाते हैं
अब देखिये कौम आए जनाज़े को उठाने
यूँ तार तो मेरे सभी बेटों को मिलेगा
अब अँधेरा मुस्तक़िल रहता है इस दहलीज़ पर
जो हमारी मुन्तज़िर रहती थीं आँखें बुझ गईं
अगर किसी की दुआ में असर नहीं होता
तो मेरे पास से क्यों तीर आ के लौट गया
अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
कहीं बे्नूर न हो जायें वो बूढ़ी आँखें
घर में डरते थे ख़बर भी मेरे भाई देते
क्या जाने कहाँ होते मेरे फूल-से बच्चे
विरसे में अगर माँ की दुआ भी नहीं मिलती
कुछ नहीं होगा तो आँचल में छुपा लेगी मुझे
माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी
क़दमों में ला के डाल दीं सब नेमतें मगर
सौतेली माँ को बच्चे से नफ़रत वही रही
धँसती हुई क़ब्रों की तरफ़ देख लिया था
माँ बाप के चेहरों मी तरफ़ देख लिया था
कोई दुखी हो कभी कहना नहीं पड़ता उससे
वो ज़रूरत को तलबगार से पहचानता है
किसी को देख कर रोते हुए हँसना नहीं अच्छा
ये वो आँसू हैं जिनसे तख़्ते—सुल्तानी पलटता है
दिन भर की मशक़्क़त से बदन चूर है लेकिन
माँ ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है
दुआएँ माँ की पहुँचाने को मीलों मील जाती हैं
कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है
दिया है माँ ने मुझे दूध भी वज़ू करके
महाज़े-जंग से मैं लौट कर न जाऊँगा
खिलौनों की तरफ़ बच्चे को माँ जाने नहीं देती
मगर आगे खिलौनों की दुकाँ जाने नहीं देती
दिखाते हैं पड़ोसी मुल्क आँखें तो दिखाने दो
कहीं बच्चों के बोसे से भी माँ का गाल कटता है
बहन का प्यार माँ की मामता दो चीखती आँखें
यही तोहफ़े थे वो जिनको मैं अक्सर याद करता था
बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है
बड़ी बेचारगी से लौटती बारात तकते हैं
बहादुर हो के भी मजबूर होते हैं दुल्हन वाले
खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव से
बासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही
No comments: