तेरा चेहरा सुब्ह का तारा लगता है
सुब्ह का तारा कितना प्यारा लगता है
तुम से मिल कर इमली मीठी लगती है
तुम से बिछड़ कर शहद भी खारा लगता है
रात हमारे साथ तू जागा करता है
चाँद बता तू कौन हमारा लगता है
किस को खबर ये कितनी कयामत ढाता है
ये लड़का जो इतना बेचारा लगता है
तितली चमन में फूल से लिपटी रहती है
फिर भी चमन में फूल कँवारा लगता है
‘कैफ’ वो कल का ‘कैफ’ कहाँ है आज मियाँ
ये तो कोई वक्त का मारा लगता है
न आया मज़ा शब की तनहाईयों में
सहर हो गई चंद अँगड़ाइयों में
न रंगीनियों में न रानाइयों में
नज़र घिर गई अपनी पराछाइयों में
मुझे मुस्कुरा मुस्कुरा कर ने देखो
मेरे साथ तुम भी हो रूसवाईयों में
गज़ब हो गया उन की महफिल से आना
घिरा जा रहा हूँ तमाशाइयों में
मोहब्बत है या आज तर्क-ए-मोहब्बत
ज़रा मिल तो जाएँ वो तनहाइयों में
इधर आओ तुम को नज़र लग न जाए
छुपा लूँ तुम्हें दिल की गहराइयों में
अरे सुनने वालो ये नगमें नहीं है
मेरे दिल की चीखें है शहनाइयों में
वो ऐ ‘कैफ’ जिस दिन से मेरे हुए हैं
तो सारा जमाना है शैदाइयों में
खानकाह में सूफी मुँह में छुपाए बैठा है
गालिबन ज़माने से मात खाए बैठा है
कत्ल तो नहीं बदला कत्ल की अदा बदली
तीर की जगह कातिल साज़ उठाए बैठा है
उन के चाहने वाले धूप धूप फिरते हैं
गैर उन के कूचे में साए साए बैठा है
वाह आशिक-ए-नादाँ काएनात ये तेरी
इक शिकस्ता शीशे को दिल बनाए बैठा है
दूर बारिश ऐ गुल-चीं वा है दीदा-ए-नर्गिस
आज हर गुल-ए-रंगीं खार खाए बैठा है
खानकाह में सूफी मुँह में छुपाए बैठा है
गालिबन ज़माने से मात खाए बैठा है
कत्ल तो नहीं बदला कत्ल की अदा बदली
तीर की जगह कातिल साज़ उठाए बैठा है
उन के चाहने वाले धूप धूप फिरते हैं
गैर उन के कूचे में साए साए बैठा है
वाह आशिक-ए-नादाँ काएनात ये तेरी
इक शिकस्ता शीशे को दिल बनाए बैठा है
दूर बारिश ऐ गुल-चीं वा है दीदा-ए-नर्गिस
आज हर गुल-ए-रंगीं खार खाए बैठा है
कुटिया में कौन आएगा इस तीरगी के साथ
अब ये किवाड़ बंद करो खामुशी के साथ
साया है कम खजूर के ऊँचे दरख़्त का
उम्मीद बाँधिए न बड़े आदमी के साथ
चलते हैं बच के शैख ओ बरहमन के साए से
अपना यही अमल है बुरे आदमी के साथ
शाइस्तगान-ए-शहर मुझे ख़्वाह कुछ कहें
सड़कों का हुस्न है मेरी आवारगी के साथ
शाएर हिकायतें न सुना वस्ल ओ इश्क की
इतना बड़ा मजाक न कर शाएरी के साथ
लिखता है गम की बात मर्सरत के मूड में
मख़्सूस है ये तर्ज़ फकत ‘कैफ’ ही के साथ
आज हम अपनी दुआओं का असर देखेंगे
तीर-ए-नज़र देखेंगे, ज़ख़्म-ए-जिगर देखेंगे
आप तो आँख मिलाते हुए शरमाते हैं,
आप तो दिल के धड़कने से भी डर जाते हैं
फिर भी ये जिद है के हम ज़ख़्म-ए-जिगर देखेंगे,
तीर-ए-नज़र देखेंगे, ज़ख़्म-ए-जिगर देखेंगे
प्यार करना दिल-ए-बेताब बुरा होता है
सुनते आए हैं के ये ख्वाब बुरा होता है
आज इस ख्वाब की ताबीर मगर देखेंगे
तीर-ए-नज़र देखेंगे, ज़ख़्म-ए-जिगर देखेंगे
जानलेवा है मुहब्बत का समा आज की रात
शम्मा हो जाएगी जल जल के धुआँ आज की रात
आज की रात बचेंगे तो सहर देखेंगे
तीर-ए-नज़र देखेंगे, ज़ख़्म-ए-जिगर देखेंगे
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