मुक्तक
(1) जो अपने आप बनता है वो रिश्ता तोड आया हूँ
किसी को सिर झुकाए मै सिसकता छोड आया हूँ
मेरे बीते हुए लम्हों मुझे आवाज ना देना
किसी की आँख मे आँसू छलकता छोड आया हूँ
(2)
जो मेरे दिल मे रहता है शिकायत उससे से क्या होगी
जुबां पर बात जो आई यकीनन वो दुआ होगी
अगर वो रुठ कर मुझसे अकेला दूर बैठा है
तो मै तसलीम करताहूँ कोई मेरी ख़ता होगी
(3)
सुहाने आज के लम्हों मे कल सी बात हो ना हो
सुरीले प्यार के नग़मे नशीली रात हो ना हो
तुम्हारे प्यार का मोती रहेगा सीप से दिल मे
भले ही उम्र भर मेरी तुम्हारी बात हो ना हो
(4)
खुदा बैठा है अम्बर पर,जरा नीचे उतर के देख
मो, है भला क्या शय कभी तू भी तो कर के देख
यहाँ हर खूनका कतरा बदलता अश्क मे कैसे
किसी से प्यार कर और प्यार मे तूभी बिछड के देख
(5)
नहीं सपनों से अब आदत हमारी दिल लगाने की
नही आदत किसी को देखकर अब मुस्कराने की
अब अक्सर रुठने की आदतें भी छोड दी हमने
किसी ने छोड दी आदत हम मुडकर मनाने की
(6)
ये आँखें बोल देगी प्यार को जितना छुपाओ गे
हमारे दर्द को गीतों मे अक्सर गुनगुनाओ गे
हमारी मौत का इल्जाम लेकर जी सको गे क्या
तुम अपनी आँख के आँसू तलक नहीं रोक पाओगे
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