Header ads

» » हफ़ीज़' बनारसी (दिल के पन्ने ) Hafeez Banarasi ( Dil ke Panne )



 


दिल की आवाज़ में आवाज़ मिलाते रहिए
जागते रहिए ज़माने को जगाते रहिए

दौलत-ए-इश्‍क़ नहीं बाँध के रखने के लिए
इस ख़जाने को जहाँ तक हो लुटाते रहिए

ज़िंदगी भी किसी मेहबूब से कुछ कम तो नहीं
प्यार है उस से तो फिर नाज़ उठाते रहिए

ज़िंदगी दर्द की तस्वीर न बनने पाए
बोलते रहिए ज़रा हँसते हँसाते रहिए

रूठना भी है हसीनों की अदा में शामिल
आप का काम मनाना है मनाते रहिए

फूल बिखराता हुआ मैं तो चला जाऊँगा
आप काँटे मिरी राहों में बिछाते रहिए

बे-वफ़ाई का ज़माना है मगर आप ‘हफीज़’
नग़मा-ए-मेहर-ए-वफा सब को सुनाते रहिए



जो पर्दो में ख़ुद को छुपाए हुए हैं
क़यामत वही तो उठाए हुए हैं

तिरी अंजुमन में जो आए हुए हैं
ग़म-ए-दो-जहाँ को भुलाए हुए हैं

कोई शाम के वक़्त आएगा लेकिन
सहर से हम आँखें बिछाए हुए हैं

जहाँ बिजलियाँ ख़ुद अमाँ ढूँडती हैं
वहाँ हम नशेमन बनाए हुए हैं

ग़ज़ल आबरू है तो उर्दू जबाँ की
तिरी आबरू हम बचाए हुए हैं

ये अशआर यूँ ही नहीं दर्द-आगीं
‘हफीज़’ आप भी चोट खाए हुए हैं




ये हादसा भी शहर-ए-निगाराँ में हो गया
बे-चेहरगी की भीड़ में हर चेहरा खो गया

जिस को सज़ा मिली थी कि जागे तमात उम्र
सुनता हूँ आज मौत की बाँहों में सो गया

हरकत किसी में है न हरारत किसी में है
क्या शहर था जो बर्फ़ की चट्टान हो गया

मैं उस को नफरतों के सिवा कुछ न दे सका
वो चाहतों का बीज मिरे दिल में बो गया

मरहम तो रख सका न कोई मेरे ज़ख्म पर
जो आया एक नश्‍तर-ए-ताज़ा चुभो गया

या कीजिए कुबूल कि चेहरा ज़र्द है
या कहिए हर निगाह को यरकान हो गया

मैं ने तो अपने ग़म की कहानी सुनाई थी
क्यूँ अपने अपने गम में हर इक शख़्स खो गया

उस दुश्‍मन-ए-वफा को दुआ दे रहा हूँ मैं
मेरा न हो सका वो किसी का तो हो गया

इक माह-वश ने चूम ली पेशानी-ए-‘हफीज़’
दिलचस्प हादसा था जो कल रात हो गया


About dil ke panne

Hi there! I am Hung Duy and I am a true enthusiast in the areas of SEO and web design. In my personal life I spend time on photography, mountain climbing, snorkeling and dirt bike riding.
«
Next
Newer Post
»
Previous
Older Post

No comments:

Leave a Reply