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» » चाँद हादियाबादी (दिल के पन्ने ) Chand Hadiabadi (Dil ke Panne )






रोज़ मुझको न याद आया कर
सब्र मेरा न आज़माया कर

रूथ जाती है नींद आँखों से
मेरे ख़्वाबों में तू न आया कर

भोर के भटके ऐ मुसाफ़िर सुन
दिन ढले घर को लौट आया कर

दिल के रखने से दिल नहीं फटता
दिल ही रखने को मुस्कुराया कर

राज़े दिल खुल न जाए लोगों पर
शेर मेरे न गुनगुनाया कर

ख़ुद को ख़ुद की नज़र भी लगती है
आईना सामने न लाया कर

रेत पे लिख के मेरा नाम अक्सर
बार बार इसको मत मिटाया कर

दोस्त होते हैं `चाँद’ शीशे के
दोस्तों को न आज़माया कर



जब तोड़ दिया रिश्ता तेरी ज़ुल्फ़े ख़फा से
बल खाए के लहराए कहीं मेरी बला से

अब तक है मेरे ज़ेह्न में वो तेरा सिमटना
सरका था कभी तेरा दुपट्टा जो हवा से


हर सुबह तेरा वादा हर एक साँझ तेरा ग़म
लिल्लाह कसम तुझको न दे झूठे दिलासे

आ जाओ तो आ जाएँगी इस घर में बहारें
आँगन मेरा गूँज उठ्ठेगा कोयल की सदा से

तन्हाई में होता है तेरे आने का धोखा
खटके जो कभी दर मेरा पूरब की हवा से

जब तूने क़दम रक्खा है उजड़े हुए दिल में
अब फूल खिलेगें तेरे आँचल की हवा से

पनघट पे तेरा आना वो पानी के बहाने
सर पे लिए गागर तेरा बल खाना अदा से

हम रिंद हैं पर माँग के तुमसे न पियेंगे
छोड़ेंगे यह मैखाना तेरा जायेंगे प्यासे


भरने के लिए माँग में लाया हूँ सितारे
आया हूँ तेरे पास उतरकर मैं ख़ला से



धुँधली धुँधली किसकी है तहरीर है मेरी
एक अधूरे ख़ाब की सी ताबीर है मेरी

लम्हें उनके साथ गुज़ारे थे जो मैंने
भूली बिसरी यादें ही जागीर है मेरी

उनसे मिलना मिल के बिछुड़ना आहें भरना
आईना तकता हूँ सूरत दिलग़ीर है मेरी

मुर्झा गये हैं फूल मेरे घर के गमलों में
सूखे पत्तों की मानिंद तक़दीर है मेरी

यादों की दीवारों पर हैं खून के छींटे
जैसे फूटी किस्मत की नक्सीर है मेरी

तेरे रूप से जगमग चमके मेरी दुनिया
अँधियारी राहों में तू तनवीर है मेरी

तेरी माँग में चाँद सितारें रहें सलामत
इसमें रौशन ख़्वाबों की ताबीर है मेरी



मोम के जिस्म में एक धागा सजा रखा है
ख़ुद को शम्अ की तरह मैंने जला रखा है

पूछता रहता हूँ मैं अपने ख़ुदा से अक्सर
मेरे मालिक यह बता दुनिया में कया रखा है

अपने हाथों से तराशा है सँवारा है उसे
हमने इक अपना ख़ुदा ख़ुद ही बना रखा है

मैं जिनके वास्ते दर- दर भटकता फिरता हूँ
उनको ख़ाबों में ख़यालों में बसा रखा हैं

मैं जिनकी याद में अक्सर बुझा -सा रहता हूँ
उन्हीं को रूह की साँसों में जला रखा है

कभी ये चूमती हैं लब तेरे कभी रुख़सार
तूने ज़ुल्फ़ों को बहुत सर पे चढ़ा रखा है



हम उन्हें फिर गले लगाएँ क्यों
आज़माए को आजमाएँ क्यों

जब यह मालूम है कि डस लेगा
साँप को दूध फिर पिलाएँ क्यों

जब कोई राबता नहीं रखना
उनके फिर आस -पास जाएँ क्यों

हो गया था मुग़ालता इक दिन
बार -बार अब फ़रेब खाएँ क्यों

जब के उनसे दुआ- सलाम नहीं
मेरी ग़ज़लें वो गुनगुनाएँ क्यों

"चाँद" तारों से वास्ता है जब
हम अँधेरों को मुँह लगाएँ क्यों



जब पुराने रास्तों पर से कभी गुज़रे हैं हम
करता- कतरा अश्क़ बन कर आँख से टपके हैं हम

वक़्त के हाथों रहे हम उम्र भर यूँ मुंतशर
दर -ब -दर रोज़ी की ख़ातिर चार- सू भटके हैं हम

हमको शिकवा है ज़माने से मगर अब क्या कहें
ज़िन्दगी के आख़िरी ही मोड़ पर ठहरे हैं हम

याद में जिसकी हमेशा जाम छ्लकाते रहे
आज जो देखा उसे ख़ुद जाम बन छलके हैं हम

एक ज़माना था हमारा नाम था पहचान थी
आज इस परदेस मैं गुमनाम से बैठें हैं हम


"चाँद" तारे थे गगन था पंख थे परवाज़ थी
आज सूखे पेड़ की एक डाल पे लटके हैं हम




तेरी आँखों का ये दर्पन अच्छा लगता है
इसमें चेहरे का अपनापन अच्छा लगता है

तुन्द हवाओं तूफ़ानों से दिल घबराता है
हल्की बारिश का भीगापन अच्छा लगता है

वैसे तो हर सूरत की अपनी ही सीरत है
हमको तो बस तेरा भोलापन अच्छा लगता है

हमने इक-दूजे को बाँधा प्यार की डोरी से
सच्चे धागों का ये बंधन अच्छा लगता है

कड़वे बोल ही बोलें ना फीका सुन पायें
हमको ये गूँगा बहरापन अच्छा लगता है

दाग़ नहीं है माथे पे रहमत का साया है
'चांद’ के चेहरे पे ये चन्दन अच्छा लगता है

About dil ke panne

Hi there! I am Hung Duy and I am a true enthusiast in the areas of SEO and web design. In my personal life I spend time on photography, mountain climbing, snorkeling and dirt bike riding.
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