उस को जाने दे अगर जाता है
ज़हर कम हो तो उतर जाता है
पेड़ दीमक की पज़ीराई में
देखते देखते मर जाता है
एक लम्हे का सफ़र है दुनिया
और फिर वक़्त ठहर जाता है
चंद ख़ुशियों को बहम करने में
आदमी कितना बिखर जाता है
मैं ज़ख्म खा के गिरा था के थाम उस ने लिया
मुआफ कर के मुझे इंतिकाम उस ने लिया
मैं सो गया तो कोई नींद से उठा मुझ में
फिर अपने हाथ में सब इंतिज़ाम उस ने लिया
कभी भुलाया कभी याद कर लिया उस को
ये काम है तो बहुत मुझ से काम उस ने लिया
न जाने किस को पुकारा गले लगा के मुझे
मगर वो मेार नहीं था जो नाम उस ने लिया
बहार आई तो फूलों से उन की ख़ुश-बू ली
हवा चली तो हवा से ख़िराम उस ने लिया
फ़ना ने कफछ नहीं माँगा सवाल करते हुए
इसी अदा पे ख़ुदा से दवाम उस ने लिया
मुझ को ये फ़िक्र कब है के साया कहाँ गया
सूरज को रो रहा हूँ ख़ुदाया कहाँ गया
फिर आइने में ख़ून दिखाई दिया मुझे
आँखों में आ गया तो छुपाया कहाँ गया
आवाज़ दे रहा था कोई मुझ को ख़्वाब में
लेकिन ख़बर नहीं के बुलाया कहाँ गया
कितने चराग़ घर में जलाए गए न पूछ
घर आप जल गया है जलाया कहाँ गया
ये भी ख़बर नहीं है के हम-राह कौन है
पूछा कहाँ गया है बताया कहाँ गया
वो भी बदल गया है मुझे छोड़ने के बाद
मुझ से भी अपने आप में आया कहाँ गया
तुझ को गँवा दिया है मगर अपने आप को
बर्बाद कर दिया है गँवाया कहाँ गया
रख़्त-ए-सफर है इस में क़रीना भी चाहिए
आँखें भी चाहिए दिल-ए-बीना भी चाहिए
उन की गली में एक महीना गुज़ार कर
कहना के और एक महीना भी चाहिए
महकेगा उन के दर पे ज़ख्म-ए-दहन है ये
वापस जब आओ तो इसे सीना भी चाहिए
रोना तो चाहिए है के दहलीज़ उन की है
रोने का रोने वालो क़रीना भी चाहिए
दौलत मिली है दिल की तो रक्खो सँभाल कर
इस के लिए दिमाग़ भी सीना भी चाहिए
दिल कह रहा था और घड़ी थी कु़बूल की
मक्का भी चाहिए है मदीना भी चाहिए
ये भी नहीं दस्त-ए-दुआ तक नहीं गया
मेरा सवाल ख़ल्क-ए-ख़ुदा तक नहीं गया
फिर यूँ हुआ के हाथ से कश्कोल गिर पड़ा
ख़ैरात ले के मुझ से चला तक नहीं गया
मस्लूब हो रहा था मगर हँस रहा था मैं
आँखों में अश्क ले के ख़ुदा तक नहीं गया
जो बर्फ गिर रही थी मेरे सर के आस-पास
क्या लिख रही थी मुझ से पढ़ा तक नहीं गया
‘फ़ैसल’ मुकालमा था हवाओं का फूल से
वो शोर था के मुझ से सुना तक नहीं गया
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