जब से बुलबुल तूने दो तिनके लिये
टूटती है बिजलियाँ इनके लिये
है जवानी ख़ुद जवानी का सिंगार
सादगी गहना है उस सिन के लिये
कौन वीराने में देखेगा बहार
फूल जंगल में खिले किनके लिये
सारी दुनिया के हैं वो मेरे सिवा
मैंने दुनिया छोड़ दी जिन के लिये
बाग़बाँ कलियाँ हों हल्के रंग की
भेजनी हैं एक कमसिन के लिये
सब हसीं हैं ज़ाहिदों को नापसन्द
अब कोई हूर आयेगी इनके लिये
वस्ल का दिन और इतना मुख़्तसर
दिन गिने जाते थे इस दिन के लिये
उस की हसरतइच्छा-desire है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
ढूँढने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ
डाल कर ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा
कुछ ये मेहंदी नहीं मेरी के मिटा भी न सकूँ
ज़ब्त सहनशीलता-Forbearance कमबख़्त ने और आ के गला घोंटा है
के उसे हाल सुनाऊँ तो सुना भी न सकूँ
उस के पहलू गोद-Lapमें जो ले जा के सुला दूँ दिल को
नींद ऐसी उसे आए के जगा भी न सकूँ
नक्श-ऐ-पा देख तो लूँ लाख करूँगा सजदे
सर मेरा अर्शआसमान नहीं है कि झुका भी न सकूँ
बेवफ़ा लिखते हैं वो अपनी कलम से मुझ को
ये वो किस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ
इस तरह सोये हैं सर रख के मेरे जानों पर
अपनी सोई हुई किस्मत को जगा भी न सकूँ
सरकती जाये है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता-आहिस्ता
निकलता आ रहा है आफ़ताब आहिस्ता-आहिस्ता
जवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा
हया यकलख़त आई और शबाब आहिस्ता-आहिस्ता
शब-ए-फ़ुर्कत का जागा हूँ फ़रिश्तों अब तो सोने दो
कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता-आहिस्ता
सवाल-ए-वस्ल पर उन को अदू का ख़ौफ़ है इतना
दबे होंठों से देते हैं जवाब आहिस्ता आहिस्ता
हमारे और तुम्हारे प्यार में बस फ़र्क़ है इतना
इधर तो जल्दी जल्दी है उधर आहिस्ता आहिस्ता
वो बेदर्दी से सर काटे 'अमीर' और मैं कहूँ उन से
हुज़ूर आहिस्ता-आहिस्ता जनाब आहिस्ता-आहिस्ता
इश्क़ में जाँ से गुज़रते हैं गुज़रने वाले
मौत की राह नहीं देखते मरने वाले
आख़िरी वक़्त भी पूरा न किया वादा-ए-वस्ल
आप आते ही रहे मर गये मरने वाले
उठ्ठे और कूच-ए-महबूब में पहुँचे आशिक़
ये मुसाफ़िर नहीं रस्ते में ठहरने वाले
जान देने का कहा मैंने तो हँसकर बोले
तुम सलामत रहो हर रोज़ के मरने वाले
आस्माँ पे जो सितारे नज़र आये 'आमीर'
याद आये मुझे दाग़ अपने उभरने वाले
हँस के फ़रमाते हैं वो देख कर हालत मेरी
क्यों तुम आसान समझते थे मुहब्बत मेरी
बाद मरने के भी छोड़ी न रफ़ाक़त मेरी
मेरी तुर्बत से लगी बैठी है हसरत मेरी
मैंने आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी खेंचा तो कहा
पिस गई पिस गई बेदर्द नज़ाकत मेरी
आईना सुबह-ए-शब-ए-वस्ल जो देखा तो कहा
देख ज़ालिम ये थी शाम को सूरत मेरी
यार पहलू में है तन्हाई है कह दो निकले
आज क्यों दिल में छुपी बैठी है हसरत मेरी
हुस्न और इश्क़ हमआग़ोश नज़र आ जाते
तेरी तस्वीर में खिंच जाती जो हैरत मेरी
किस ढिटाई से वो दिल छीन के कहते हैं 'अमीर'
वो मेरा घर है रहे जिस में मुहब्बत मेरी
अच्छे ईसा यहाँ उपचारकहो मरीज़ोंरोगियोंका ख़याल अच्छा है
हम मरे जाते हैं तुम कहते हो हाल अच्छा है
तुझ से माँगूँ मैं तुझी को कि सब कुछ मिल जाये
सौ सवालों से यही इक सवाल अच्छा है
देख ले बुलबुल-ओ-परवाना की बेताबी को
हिज्रविरहअच्छा न हसीनोंसुंदरियों का विसालमिलनअच्छा है
आ गया उस का तसव्वुरकल्पना, विचार,ध्यानतो पुकारा ये शौक़
दिल में जम जाये इलाही ये ख़याल अच्छा है
ऐ ज़ब्त देख इश्क़ की उन को ख़बर न हो
दिल में हज़ार दर्द उठे आँख तर न हो।
मुद्दत में शाम-ए-वस्ल हुई है मुझे नसीब
दो-चार साल तक तो इलाही सहर न हो।
इक फूल है गुलाब का आज उन के हाथ में
धड़का मुझे ये है कि किसी का जिगर न हो।
ढूँडे से भी न मअ'नी-ए-बारीक जब मिला
धोका हुआ ये मुझ को कि उस की कमर न हो।
उल्फ़त की क्या उम्मीद वो ऐसा है बेवफ़ा
सोहबत हज़ार साल रहे कुछ असर न हो।
तूल-ए-शब-ए-विसाल हो मिस्ल-ए-शब-ए-फ़िराक़
निकले न आफ़्ताब इलाही सहर न हो
ना शौक़ ए वस्ल का दावा ना ज़ौक ए आश्नाई का
ना इक नाचीज़ बन्दा और उसे दावा ख़ुदाई का
कफ़स में हूँ मगर सारा चमन आँखों के आगे है
रिहाई के बराबर अब तस्सव्वुर है रिहाई का
नया अफ़साना कह वाइज़ तो शायद गर्म हो महफ़िल
क़यामत तो पुराना हाल है रोज़ ए जुदाई का
बहार आई है अब अस्मत का पर्दाफ़ाश होता है
जुनूं का हाथ है आज और दामन पारसाई का
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