मैनें पूचा पहला पत्थर मुझ पर कौन उठायेगा
आई इक आवाज़ कि तू जिसका मोहसिन कहलायेगा
पूछ सके तो पूछे कोई रूठ के जाने वालों से
रोशनियों को मेरे घर का रस्ता कौन बतायेगा
लोगो मेरे साथ चलो तुम जो कुछ है वो आगे है
पीछे मुड़ कर देखने वाला पत्थर का हो जायेगा
दिन में हँसकर मिलने वाले चेहरे साफ़ बताते हैं
एक भयानक सपना मुझको सारी रात डरायेगा
मेरे बाद वफ़ा का धोखा और किसी से मत करना
गाली देगी दुनिया तुझको सर मेरा झुक जायेगा
सूख गई जब इन आँखों में प्यार की नीली झील "क़तील"
तेरे दर्द का ज़र्द समन्दर काहे शोर मचायेगा
सदमा तो है मुझे भी कि तुझसे जुदा हूँ मैं
लेकिन ये सोचता हूँ कि अब तेरा क्या हूँ मैं
बिखरा पड़ा है तेरे ही घर में तेरा वजूद
बेकार महफ़िलों में तुझे ढूँढता हूँ मैं
मैं ख़ुदकशी के जुर्म का करता हूँ ऐतराफ़
अपने बदन की क़ब्र में कब से गड़ा हूँ मैं
किस-किसका नाम लाऊँ ज़बाँ पर कि तेरे साथ
हर रोज़ एक शख़्स नया देखता हूँ मैं
ना जाने किस अदा से लिया तूने मेरा नाम
दुनिया समझ रही है के सब कुछ तेरा हूँ मैं
ले मेरे तजुर्बों से सबक ऐ मेरे रक़ीब
दो चार साल उम्र में तुझसे बड़ा हूँ मैं
जागा हुआ ज़मीर वो आईना है "क़तील"
सोने से पहले रोज़ जिसे देखता हूँ मैं
शाम के साँवले चेहरे को निखारा जाये
क्यों न सागर से कोई चाँद उभारा जाये
रास आया नहीं तस्कीं का साहिल कोई
फिर मुझे प्यास के दरिया में उतारा जाये
मेहरबाँ तेरी नज़र, तेरी अदायें क़ातिल
तुझको किस नाम से ऐ दोस्त पुकारा जाये
मुझको डर है तेरे वादे पे भरोसा करके
मुफ़्त में ये दिल-ए-ख़ुशफ़हम न मारा जाये
जिसके दम से तेरे दिन-रात दरख़्शाँ थे "क़तील"
कैसे अब उस के बिना वक़्त गुज़ारा जाये
तूने ये फूल जो ज़ुल्फ़ों में लगा रखा है
इक दिया है जो अँधेरों में जला रखा है
जीत ले जाये कोई मुझको नसीबों वाला
ज़िन्दगी ने मुझे दाँव पे लगा रखा है
जाने कब आये कोई दिल में झाँकने वाला
इस लिये मैंने ग़िरेबाँ को खुला रखा है
इम्तेहाँ और मेरी ज़ब्त का तुम क्या लोगे
मैं ने धड़कन को भी सीने में छुपा रखा है
दिल था एक शोला मगर बीत गये दिन वो क़तील,
अब क़ुरेदो ना इसे राख़ में क्या रखा है
यारो किसी क़ातिल से कभी प्यार न माँगो
अपने ही गले के लिये तलवार न माँगो
गिर जाओगे तुम अपने मसीहा की नज़र से
मर कर भी इलाज-ए-दिल-ए-बीमार न माँगो
खुल जायेगा इस तरह निगाहों का भरम भी
काँटों से कभी फूल की महकार न माँगो
सच बात पे मिलता है सदा ज़हर का प्याला
जीना है तो फिर जीने के इज़हार न माँगो
उस चीज़ का क्या ज़िक्र जो मुम्किन ही नहीं है
सहरा में कभी साया-ए-दीवार ना माँगो
दुनिया ने हम पे जब कोई इल्ज़ाम रख दिया
हमने मुक़ाबिल उसके तेरा नाम रख दिया
इक ख़ास हद पे आ गई जब तेरी बेरुख़ी
नाम उसका हमने गर्दिशे-अय्याम समय का चक्कररख दिया
मैं लड़खड़ा रहा हूँ तुझे देख-देखकर
तूने तो मेरे सामने इक जाम रख दिया
कितना सितम-ज़रीफ़ हँसी-हँसी में अत्याचार करने वाला है वो साहिब-ए-जमाल
उसने जला-जला के लबे-बाम खिड़की पर रख दिया
इंसान और देखे बग़ैर उसको मान ले
इक ख़ौफ़ का बशर ने ख़ुदा नाम रख दिया
अब जिसके जी में आए वही पाए रौशनी
हमने तो दिल जला के सरे-आम रख दिया
क्या मस्लेहत-शनास चतुर सुजान था वो आदमी ‘क़तील’
मजबूरियों का जिसने वफ़ा नाम रख दिया
तड़पती हैं तमन्नाएँ किसी आराम से पहले
लुटा होगा न यूँ कोई दिल-ए-ना-काम से पहले
ये आलम देख कर तू ने भी आँखें फेर लीं वरना
कोई गर्दिश नहीं थी गर्दिश-ए-अय्याम से पहले
गिरा है टूट कर शायद मेरी तक़दीर का तारा
कोई आवाज़ आई थी शिकस्त-ए-जाम से पहले
कोई कैसे करे दिल में छुपे तूफ़ाँ का अंदाज़ा
सुकूत-ए-मर्ग छाया है किसी कोहराम से पहले
न जाने क्यूँ हमें इस दम तुम्हारी याद आती है
जब आँखों में चमकते हैं सितारे शाम से पहले
सुनेगा जब ज़माना मेरी बर्बादी के अफ़साने
तुम्हारा नाम भी आएगा मेरे नाम से पहले
वहाँ
ReplyDeleteWah
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