पगले अड़े हैं जो भी सयानों के सामने
दो पल भी टिक न पाएँगे जुमलों के सामने
मुर्गों से कौन लेता है अब सुबह की ख़बर
जाहिल हैं बाँग दे रहे तोपों के सामने
करने लगीं हैं मेंढकी अब शेर का शिकार
तुकबंदियाँ फुदक रहीं ग़ज़लों के सामने
दो शेर........
बुझा के सोता हूँ गर रात जलते टी वी को
तो सुबह,सुबह का,अखबार जलने लगता है
न जाने लफ़्ज़ों में क्या फूँक देते हैं कमज़र्फ़
कि सुनने वाले का किरदार जलने लगता है
तरन्नुम के अलावा अब मिलेगा क्या तराने में
गज़ल बनने लगी दिन रात अब तोे कारखाने में
जियादा हो जहाँ अशआर से औक़ात चेहरों की
भलाई है वहाँ से गज़लों की गठरी उठाने में
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