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» »Unlabelled » ज़फ़र गोरखपुरी (दिल के पन्ने )




ज़मीं, फिर दर्द का ये सायबां कोई नहीं देगा
तुझे ऐसा कुशादा आसमां कोई नहीं देगा

अभी ज़िंदा हैं, हम पर ख़त्म कर ले इम्तिहाँ सारे
हमारे बाद कोई इम्तिहां, कोई नहीं देगा

जो प्यासे हो तो अपने साथ रक्खो अपने बादल भी
ये दुनिया है, विरासत में कुआँ कोई नहीं देगा

हवा ने सुब्ह की आवाज़ के पर काट डाले हैं
फ़ज़ा चुप है, दरख़्तों में अज़ां कोई नहीं देगा

मिलेंगे मुफ्त़ शोलों की क़बाएँ बाँटने वाले
मगर रहने को काग़ज़ का मक़ा कोई नहीं देगा

हमारी ज़िंदगी बेवा दुल्हन, भीगी हुई लकड़ी
जलेंगे चुपके–चुपके सब, धुआँ कोई नहीं देगा



इरादा हो अटल तो मोजज़ाचमत्कार ऐसा भी होता है
दिए को ज़िंदा रखती है हव़ा, ऐसा भी होता है

उदासी गीत गाती है मज़े लेती है वीरानी
हमारे घर में साहब रतजगा ऐसा भी होता है

अजब है रब्त की दुनिया ख़बर के दायरे में है
नहीं मिलता कभी अपना पता ऐसा भी होता है

किसी मासूम बच्चे के तबस्सुममुस्कुराहट में उतर जाओ
तो शायद ये समझ पाओ, ख़ुदा ऐसा भी होता है

ज़बां पर आ गए छाले मगर ये तो खुला हम पर
बहुत मीठे फलों का ज़ायक़ा ऐसा भी होता है

तुम्हारे ही तसव्वुर कल्पना की किसी सरशार मंज़िल में
तुम्हारा साथ लगता है बुरा, ऐसा भी होता है


जिस्म छूती है जब आ आ के पवन बारिश में
और बढ़ जाती है कुछ दिल की जलन बारिश में

मेरे अतराफ़ छ्लक पड़ती हैं मीठी झीलें
जब नहाता है कोई सीमबदन बारिश में

दूध में जैसे कोई अब्र का टुकड़ा घुल जाए
ऐसा लगता है तेरा सांवलापन बारिश में

नद्दियाँ सारी लबालब थीं मगर पहरा था
रह गए प्यासे मुरादों के हिरन बारिश में

अब तो रोके न रुके आंख का सैलाब सखी
जी को आशा थी कि आएंगे सजन बारिश में

बाढ़ आई थी ज़फ़र ले गई घरबार मेरा
अब किसे देखने जाऊं मैं वतन, बारिश में



मेरे बाद किधर जाएगी तन्हाई
मैं जो मरा तो मर जाएगी तन्हाई

मैं जब रो रो के दरिया बन जाऊँगा
उस दिन पार उतर जाएगी तन्हाई

तन्हाई को घर से रुख़्सत कर तो दो
सोचो किस के घर जाएगी तन्हाई

वीराना हूँ आबादी से आया हूँ
देखेगी तो डर जाएगी तन्हाई

यूँ आओ कि पावों की भी आवाज़ न हो
शोर हुआ तो मर जाएगी तन्हाई


मेरा क़लम मेरे जज़्बात माँगने वाले
मुझे न माँग मेरा हाथ माँगने वाले

ये लोग कैसे अचानक अमीर बन बैठे
ये सब थे भीक मेरे साथ माँगने वाले

तमाम गाँव तेरे भोलपन पे हँसता है
धुएँ के अब्र से बरसात माँगने वाले

नहीं है सहल उसे काट लेना आँखों में
कुछ और माँग मेरी रात माँगने वाले

कभी बसंत में प्यासी जड़ों की चीख़ भी सुन
लुटे शजर से हरे पात माँगने वाले

तू अपने दश्त में प्यासा मरे तो बेहतर है
समंदरों से इनायात माँगने वाले

About dil ke panne

Hi there! I am Hung Duy and I am a true enthusiast in the areas of SEO and web design. In my personal life I spend time on photography, mountain climbing, snorkeling and dirt bike riding.
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