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» » नज़र बकरी (दिल के पन्ने )Nazeer Baaqri (Dil ke Panne )



1.
अपनी आँखों के समुन्दर में उतर जाने दे

 अपनी आँखों के समुन्दर में उतर जाने दे
तेरा मुजरिम हूँ, मुझे डूब के मर जाने दे

ऐ नए दोस्त, मैं समझूंगा तुझे भी अपना
पहले माजी का, कोई ज़ख्म तो भर जाने दे

आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जाएगी
कोई आंसू मेरे दामन पे बिखर जाने दे

ज़ख्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझको
सोचता हूँ की कहूँ तुझसे, मगर जाने दे
2.
धुंआ बनके फिजा में उड़ा दिया मुझको

 धुंआ बनके फिजा में उड़ा दिया मुझको
मैं जल रहा था, किसी ने बुझा दिया मुझको

तरक्कियों का फ़साना सुना दिया मुझको
अभी हंसा भी न था और रुला दिया मुझको

मैं एक ज़र्रा, बुलंदी को छूने निकला था
हवा ने थाम के ज़मी पर गिरा दिया मुझको

सफ़ेद संग की चादर लपेट कर मुझ पर
फसिल-ए-शहर पे किसने सजा दिया मुझको

खड़ा हूँ आज भी, रोटी के चार हर्फ़ लिए
सवाल ये है कि किताबों ने क्या दिया मुझको

न जाने कौन सा जज्बा था खुद ही 'नजीर'
मेरी ही ज़ात का दुश्मन बना दिया मुझको

About dil ke panne

Hi there! I am Hung Duy and I am a true enthusiast in the areas of SEO and web design. In my personal life I spend time on photography, mountain climbing, snorkeling and dirt bike riding.
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