बहुत दावे किए हैं आगही ने
नहीं समझा मोहब्बत को किसी ने
जर्बी पर ख़ाक के ज़र्रे नहीं हैं
सितारे चुन दिए हैं बंदगी ने
शिकायत है उन्हें भी ज़िंदगी से
जिन्हें सब कुछ दिया है ज़िंदगी ने
सबा से पूछिए क्या गुल खिलाए
चमन में उन की आहिस्ता-रवी ने
ख़ुदा ग़ारत करे दस्त-ए-सितम को
अभी तो आँख खोली थी कली ने
माह ओ अंजुम को ज़ौ बख़्शी है ‘मुमताज’
हमारे आँसुओं की रौशनी ने
फूल जब कोई बिखरता है तो हँस देते हैं
दर्द जब हद से गुज़रता है हँस देते हैं
पर्दा-ए-ज़ेहन पे माज़ी के झराकों से कभी
एक चेहरा सा उभरता है तो हँस देते हैं
सुब्ह तक जलना पिघलना है हमारी क़िस्मत
रंग-ए-शब यूँ जो निखरता है तो हँस देते हैं
आगही भूलने देती नहीं हस्ती का मआल
टूट के ख़्वाब बिखरता है तो हँस देते हैं
ज़िंदगी जोहद-ए-मुसलसल है हरासाँ क्यूँ हो
वलवला जब कोई मरता है तो हँस देते हैं
रंग कुछ शोख़ से तस्वीर में भर कर देखो
ज़िंदगी शोख़ है इस शोख़ पे मर कर देखो
एक पल के लिए ‘मुमताज’ ठहर कर देखो
दिल की जानिब भी ज़रा एक नज़र कर देखो
अपनी हस्ती का सनम तोड़ो तो पाओगे नजात
रेत के ज़र्रों की मानिंद बिखर कर देखो
कितना प्यारा है जहाँ कितनी हसीं है ये हयात
यास ओ अंदोह के दरिया से गुज़़र कर देखो
लब-ए-साहिल पे तो ‘मुमताज’ न मिल पाया सुकूँ
सैल-ए-तूफ़ान-ए-हवादिस से गुज़र कर देखो
ये वफ़ा माँगे है तुम से न जफ़ा माँगे है
मेरी मासूम जर्बी एक ख़ुदा माँगे है
दिल का हर जख़्म मेरा दाद-ए-वफ़ा माँगे है
बे-गुनाही मेरी अब तुम से सज़ा माँगे है
दिल-ए-कम-बख़्त को देखो तो ये क्या माँगे हैं
एक बुत सब से अलग सद से जुदा माँगे हैं
इक उचटती सी नज़र एक तबस्सुम की किरण
दिल-ए-कम-ज़र्फ़ वफ़ाओं का सिला माँगे है
होश जाते रहे ‘मुमताज़ के शायद लोगो
अस्त्र-ए-हाज़िर में वो जीने की दुआ माँगे है

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