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» » अब्दुल मजीम ‘महश्‍र’ (दिल के पन्ने ) Abdul Majeem Mahashr (Dil ke Panne )







ग़म से मिलता ख़ुशी से मिलता है
सिलसिला ज़िन्दगी से मिलता है

वैसे दिल तो सभी से मिलता है
उनसे क्यूँ आज़जी से मिलता है

है अजब जो मुझे रुलाता है
चैन दिन को उसी से मिलता है

हम जो हैं साथ ग़म उठाने को
फिर भी वह अजनबी से मिलता है

बिगड़ी बन जाएगी तेरी ‘महशर’
बे ग़रज़ गर किसी से मिलता है


रूठ जाएँ तो क्या तमाशा हो
हम मनाएँ तो क्या तमाशा हो

काश वायदा यही जो हम करके
भूल जाएँ तो क्या तमाशा हो

तन पे पहने लिबास काग़ज़ सा
वह नहाएँ तो क्या तमाशा हो

चुपके चोरी की ये मुलाकातें
रंग लाएँ तो क्या तमाशा हो

अपने वादा पे वस्ल में ‘महशर’
वो न आएँ तो क्या तमाशा हो



उनकी काफ़िर अदा से डरता हूँ
आज दिल की सज़ा से डरता हूँ

जानता हूँ कि मौत बरहक़ है
जाने क्यूँ मैं कज़ा से डरता हूँ

रहजनों से बच भी जाऊँगा
आज तक रहनुमा से डरता हूँ

घर के आँगन में जिसके डरे हैं
मग़रबी इस हवा से डरता हूँ

अहले-दुनिया का डर नहीं मुझको
रोज़े-‘महशर’ ख़ुदा से डरता हूँ



जिसपे तेरा इताब हो जाए
उसका जीना अज़ाब हो जाए

उनके चेहरे को देख ले जो भी
उसका चेहरा गुलाब हो जाए

उनकी यादें जो दिल में बस जाएँ
ज़िन्दगी लाजवाब हो जाए

या-इलाही तिरी मुहब्बत में
ज़िन्दगानी शराब हो जाए

उनका दिल जीत लो तो ऐ ‘महशर’
हर ख़ता का हिसाब हो जाए



तनहा होकर जो रो लिए साहब
दाग़ दामन के धो लिए साहब

दिल में क्या है वो बोलिए साहब
आगे पीछे न डोलिए साहब

उन गुलों का नसीब क्या कहना
तुमने हाथों में जो लिए साहब

तारे गिन गिन सुबह हुई मेरी
रात भर आप सो लिए साहब

उनके दर का भिखारी है ‘महशर’
उसको फूलों से तोलिए साहब

About dil ke panne

Hi there! I am Hung Duy and I am a true enthusiast in the areas of SEO and web design. In my personal life I spend time on photography, mountain climbing, snorkeling and dirt bike riding.
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