मिलना था इत्तेफाक़ बिछड़ना नसीब था
वो इतनी दूर हो गया जितना करीब था
मैं उसको देखने को तरसती ही रह गई
जिस शख्स की हथेली में मेरा नसीब था
बस्ती के सारे लोग ही आतिश परस्त थे
घर जल रहा था और समंदर करीब था
दफना दिया गया मुझे चांदी की क़ब्र में
मैं जिसको चाहती थी वो लड़का ग़रीब था
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मजबूरियों के नाम पे सब छोड़ना पड़ा
दिल तोड़ना कठिन था मगर तोड़ना पड़ा
मेरी पसंद और थी सबकी पसंद और
इतनी ज़रा सी बात पे घर छोड़ना पड़ा
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इतनी उदास कब थीं कलाई में चूडियाँ
ढीली हुई हैं तेरी जुदाई में चूड़ियाँ
क्या जाने रंग कौन सा उसको पसंद है
हर रंग की इसीलिए लाई हूँ चूड़ियाँ
थककर खनक खनक के तेरे इंतज़ार में
चुपचाप सो गई हैं रज़ाई में चूड़ियाँ
इस साल उसने भेजे हैं तोहफ़े नए नए
कंगन अगस्त में तो जुलाई में चूड़ियाँ
हर दिन वो मेरे वास्ते लाता है प्यार से
हर रोज़ टूटती हैं लड़ाई में चूड़ियाँ
अंजुम संम्भाल रक्खी हैं मैंने वो आज तक
आई थीं कांच की जो सगाई में चूड़ियाँ
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मुहब्बतों का सलीक़ा सिखा दिया मैंने...
तेरे बगैर भी जी के दिखा दिया मैंने ...
बिछड़ना मिलना तो किस्मत की बात है लेकिन,
दुआएं दे तुझे शायर बना दिया मैंने...
जो तेरी याद दिलाता था,चहचहाता था ,
मुंडेर से वो परिंदा उडा दिया मैंने ......
जहाँ सजा के मैं रखती थी तेरी तस्वीरें
अब उस मकान में ताला लगा दिया मैंने..
ये मेरे शेर नहीं मेरे ज़ख़्म है अंजुम ,
ग़ज़ल के नाम पे क्या क्या सुना दिया मैंने

वहाँ जी वहाँ
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